Digvijaya Singh
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28 मार्च 1981 मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम विधेयक

28 मार्च 1981 मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम विधेयक

दिनांक 28.03.1981
मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम विधेयक।

 

मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम (संशोधन विधेयक 1981)
    

कृषि राज्यमंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : सभापति महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम (संशोधन) विधेयक, 1981 (क्रमांक 4 सन् 1981) पर विचार किया जाये सभापति महोदय, मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम के नियमों के अन्दर दो महत्वपूर्ण संशोधन प्रस्तावित किए गये हैं। अभी तक निगम का अध्यक्ष विभाग का मंत्री हुआ करता था लेकिन यह देखनें में आया और मेरा निजि अनुभव भी यही रहा कि विभाग के कार्यों के साथ ही साथ निगम के अध्यक्ष पर उतना समय नहीं दे सकता जितना कि देना चाहिये। उसकी वजह से निगम का कार्य भी पिछड़ता है। प्रस्तावित संशोधन यह है कि भारसाधक मंत्री के अलावा जिसको राज्य शासन किसी अन्य व्यक्ति को मनोनीत करे उसको भूमि विकास निगम का अध्यक्ष बनाया जाय। दूसरा यह हैं कि अभी तक जो संचालक मंडल था वह पूरी तरह से शासकीय था हमारे मित्र जब इधर बैठे थे तब उन्होंने जो संचालक मण्डल का निर्माण किया था वह पूरी तरह से शासकीय था। उसमें एक भी व्यक्ति नहीं था। किसानों का कोई भी प्रतिनिधित्व संचालक मण्डल में नहीं था। इस बात को हमने महसूस किया। किसानों की आवाज को भूमि विकास निगम उठानें के लिये किसानों के प्रतिनिधियों का होना आवश्यक हैं। किसानों का प्रतिनिधि नहीं होना यह किसानों के साथ अन्याय हैं। इसलिए हमने तथा प्रोजेक्ट के एरिया से और चम्बल प्रोजिक्ट के एरिया से एक एक व्यक्ति को भूमि विकास निगम में जिन्होंने इन क्षेत्र में निगम के कार्यों का लाभ उठाया उनमें से संचालक मण्डल में मनोनित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त इसमें कोई विशेष बात नहीं है। मैं अपेक्षा करता हूं कि विरोधी पक्ष के माननीय सदस्य भी इसको स्वीकार करेंगे।
    

सभापति महोदय : प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम (संशोधन) विधेयक, 1881 क्रमांक 4 सन् 1981) पर विचार किया जाये।
    माननीय राज्य मंत्री ने अपना भाषण नहीं सुधारा।
    

श्री नागेन्द्रसिंह (नामोड़) : सभापति महोदय, मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम (संशोधन) विधेयक पर विचार किया जा रहा है। मुझे खुशी इस बात की है कि माननीय मन्त्री महोदय ने कम से कम अपनी योग्गयता को तों पहचान लिया है। उन्होंने यह महसूस किया कि वे इस निगम की अध्यक्षता करने की वे योग्यता नहीं रखते हैं। वे इस प्रदेश के कृषि मंत्री है जब वे एक निगम को अच्छी तरह से नहीं चला सकते हैं तो इस प्रदेश के इस प्रदेश के कृषि विभाग का संचालन वे किस प्रकार से करेंगे। यह तो प्रदेश की जनता ही जान सकती हैं। सभापति महोदय, अगर यह संशोधन किसी प्रशासनीक ढांचे को सुधारने के लिये लाया गया होता तो मैं इसका हृदय से समर्थन करता लेकिन यह प्रशासनीक ढांचे को सुधारने के लिये यह तो राजनैतिक स्वार्थो को सिद्ध करने के लिए लाया गया है। इस संशोधन को लाने का मतलब यह है कि जो कांग्रेस पार्टी में आपस में झगडे चल रहे है उनको समाप्त करने के लिए किसी भी कांग्रेसी को संतुष्ट करने के लिये उसको निगम का अध्यक्ष बना दिया जायेगा। यह राजनैतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिये है।
    

सभापति महोदय यदि इसका केवल एडमिनिस्ट्रेटिव ग्राउन्ड पर लाया गया होता तो मै महसूस करता कि निगम का अध्यक्ष एक अच्छा एडमिनिस्ट्रेव स्पेशलिस्ट होना चाहिए। सभापति महोदय, दूसरी बात कमांड एरिया डेवलपमेंट से लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों को भी निर्देशक बोर्ड में रखा गया है। यह बड़ी अच्छी बात है। मैं इसका स्वागत करता हूं और मन्त्रीजी को बधाई देता हूं। किसानों को भी उसमें रखा जाना चाहिए था। इसी सन्दर्भ में मैं एक चीज और कहना चाहूंगा। कमांड एरिया डेवलपमेंट में कार्य सही रूप से नहीं हो रहे हैं उससे प्रदेश और जनता को क्षति उठानी पड़ रही है। मंत्रीजी ने तवा व चम्बल का उदाहरण दिया। तवा पर करोड़ों रूपये लगे हैं और उसके कमांड एरिया डेवलपमेंट में जहां कि संभवतः 8 लाख एकड़ कमांड एरिया में आता हैं, शुरूआत में केवल 12 हजार एकड़ डेवलपमेंट हुआ। होता यह है कि जो पावरटी लाइन के नीचे रहने वाले लोग है। उनके लिए वही सबसे बड़ी चीज है। अगर प्रोडक्शन नहीं बढ़ेगा तो अर्थशास्त्र का प्रिंसिपल हैं इनफलेशन बढ़ता हैं और उससे प्रभावित जो होते हैं वे पावरटी लाईन के नीचे के लोग होते हैं। दूसरी बात बडे़ कमांड एरिया कें डेवलपमेंट के लिये पर्याप्त इनफास्ट्रक्चर और एक्सपरटाइज भी नहीं हैं। उस और भी इस निगम को ध्यान देना चाहिए कि एक्सपरटाइ उपयोग में लाए। दूसरी बात सभापति महोदय, इस कमांड एरिया में जो वाटर सप्लाई है जो किसानों को दी जाती है, उसके लिए निश्चित नियम नहीं है। बड़े किसानों को पानी मिलता हैं परन्तु छोटे किसानों को पानी निश्चित रूप से नहीं मिल पाता है और इसलिए छोटे किसान अपनी जमीन में इनवेस्ट करने के लिए तैयार नहीं होते है और इसका लाभ नहीं उठा पाते है। ये कुछ दो-चार चीजे एरिया के डेवलपमेंट के संबंध में कहना चाहता हूं। मै संशोधन का पूरी तरह से विरोध नहीं करना चाहता हूं और निवेदन करना चाहता हूं कि यह निगम राजनीति का चारागाह नहीं बन जाय।
    

श्री कमलेश्वर द्विवेदी (गोपड बनास) : माननीय सभापतिजी, मैं माननीय कृषि मन्त्रीजी द्वारा प्रस्तुत मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम संशोधन विधेयक 1981 का समर्थन करने के लिए प्रस्तुत हुआ हूं। सबसे पहले तो मैं उनको इस चीज के लिए धन्यवाद दे दूं कि जिन प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिए शासन कटिबद्ध है, वर्तमान शासन विशेष तौर पर, उसकी शुरूआत उन्होंने अपने विभाग में की है। इस वर्ष कई निगमों में कई कार्पोरेशन्स में शासन के जो व्यक्ति है उनके अलावा उनके अध्यक्ष बनाए गए हैं और उस माध्यम से जो सम्बन्धित क्षेत्र के विशेषज्ञ व्यक्ति है जो इस क्षेत्र में काम कर चुके हे उनको भी मौका मिला है कि उस क्षेत्र में, उस कार्पोरेशन का अध्यक्ष होने के नाते अपना सहयोग तथा योगदान दे सके। इसके अन्तर्गत लैंड डेवलपमेंट कार्पोंरेशन में भी अशासकीय व्यक्ति जो चेअरमेन होगा, वह स्वागत योग्य है। अभी मेरे पूर्व वक्ता महोदय ने यह कहां कि शायद माननीय कृषि मंत्रीजी अपनी क्षमता उचित रूप से नहीं दिखा पा रहे है-यह बहुत ही गलत है।
    

राजनीतिक रूप में ही इसको देखा जाता है तो यह प्रजातांत्रिक मूल्यों की अवहेलना होगी। इसलिए इसको उस रूप में नहीं देखना चाहिये। कृषि विभाग बहुत बढ़ा विभाग है जिसकी कि जिम्मेदारी एक मंत्री के ऊपर होती है। यदि मन्त्रिमण्डल से संबंधित एक मंत्री ही सभी काम करने लगे तो वैसे तो एक मन्त्री उसकी सारी देखरेख करता ही है लेकिन इसका मतलब यह नहीं हैं मन्त्री ज्यादा से ज्यादा अधिकार अपने हाथ में लें। इसलिए माननीय मन्त्री जी ने इसके द्वारा यह प्रयास किया है अधिकारों का विकेन्द्रीयकरण किया जावें। यह अच्छी बात हैं और स्वागत योग्य है सभापति महोदय, में आपके माध्यम से निवेदन करना चाहूंगा कि सरकार को एक दूसरे के कंधे पर ये सारी जिम्मेदारी देना चाहिये जैसा कि इस विधेयक के माध्यम से किया गया है। इसमें जो अशासकीय व्यक्ति होगा उसके लिये यह सावधानी रखनी होगी कि वह ऐसा व्यक्ति है। जो कि एग्रीकल्चर के बारे मे अपनी सारी जानकारी रखता हो, विकास की दिशा में उसको पूरी जानकारी हो कि कैसे करें। भूमि विकास निगम का अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति हो जो कि इसके काम को भलीभांति संभाल सकें। इसमें जो डायरेक्टर्स का प्रावधान किया गया है कि जो क्षेत्र का योग्य व्यक्ति होगा वह इसका डायरेक्टर होगा। अभी तक जो इसमें प्रावधान था वह इस तरह का था कि इसके डायरेक्टर शासकीय व्यक्ति ही हुआ करते थें। तो जितने भी हमारे शासकीय सेकेटरी वगैरह हैं उनके ऊपर जिम्मेदारी डाल दी जाती थी, लेकिन उनके पास उनके विभाग का काम ही इतना होता था कि उसी से उनको फुरसत नहीं होती थी। यदि उनके ऊपर जिम्मेदारी डालदी जाये तो वह उस काम को ठीक से कर नहीं सकेंगे। वह असम्भव लगता है। यदि इस विकास निगम में जनप्रतिनिधियों का सहयोग लिया जाता है तो वह सभी दृष्टियों से स्वागत योग्य है और जो यह संशोधन विधेयक माननीय मंत्री जी द्वारा प्रस्तुत किया गया है इसके लिए मैं उनको हृदय से धन्यवाद देता हूं।
    

श्री पुरूषोतम राव विपट (खाचरोद) : सभापति महोदय, अभी जो माननीय मंत्री जी द्वारा मध्यप्रदेश भूमि विकास निगम (संशोधन) विधेयक 1981 प्रस्तुत किया गया है उसके संबंध में मेरा निवेदन है कि प्रजातन्त्र मैं अधिकतम सत्ता का जितना विकेन्द्रिकरण होता है उससे हमारा प्रजातंत्र मजबूत होता है और उसका मुख्य उद्देश्य यही होता है कि ज्यादा से ज्यादा जनता के लोगों का सहयोग शासन के कामों में मिले और इन दृष्टियों से इन निगमों का निर्माण किया जाता है। इस दिशा में माननीय मंत्री जी ने इस संशोधन विधेयक कों प्रस्तुत कर एक अच्छी परम्परा डालने की कोशिश की हैं कि अब उस विभाग का मंत्री इसका अध्यक्ष नहीं रहेगा और जनप्रतिनिधियों को ही उसका अध्यक्ष बनाया जायेगा। इसके साथ साथ इसके लिए जो कमेटी का गठन होने वाला हैं उसमें भी जनप्रतिनिधियों को लिया जायेगा। यह विचार अच्छा है। भावना अच्छी है। लेकिन जब संचालक मंडल का गठन कार्यान्वयन होने की स्थिति में आता है तब दिक्कत आती है। अभी तक जितने भी निगम बने हैं उसमें यह देखने में आता है कि जब निगम के संचालक मण्डल का गठन होता है तों उस निगम के सारे कार्यकलाप एक दलगत राजनीति में जाकर उलझ जाते हैं। जिस शुद्ध भावना से मंत्री जी ने इसको रक्खा है। उसी शुद्ध भावना से इसके संचालक मंडल के गठन के समय भी अपने कार्यकलापों का परिचय दे तब तो ठीक है। नही ंतो देखने में आता है कि संचालक मंडल के गठन के समय ही गड़बड़ी होती है। सभापति महोदय, अभी बीस सूत्रीय कमेटी का गठन किया गया लेकिन उसके गठन में दलगत राजनीति से काम लिया गया है उस बीस सूत्रीय कमेटी में एक ऐसे व्यक्ति को उसका सदस्य बनाया गया है जिसको कमेटी का सदस्य बनानें के बाद एक लड़की के अपहरण करने के आरोप में पुलिस के हवाले किया गया। इस तरह के लोगों को कमेटी के अन्दर प्रवेश देते हैं तो इसका उद्देश्य पूरा नहीं कर सकेंगे। इसलिये निवेदन करूंगा कि जिस भावना को बताया गया है कि निगम ठीक प्रकार से चले तो जनता के सही प्रतिनिधियों को लिया जाये। यदि सही माने में जनता के प्रतिनिधियों को, किसानों के प्रतिनिधियों को, जो प्रभावित लोग हैं उनके प्रतिनिधिया का समावेश करके संचालक मंडल का गठन किया जाये और अध्यक्ष एक निर्विवाद व्यक्ति को बनाया जायें तो समझता हूं यह विधेयक जनता की भावनाओं को पूर्ण करने मे सफल होगा। मैं इस विधेयक का कंडीशनल समर्थन करता हूं और जनता के सही प्रतिनिधि राजनीति से ऊपर उठकर, दलगत भावना से परे होकर संचालक मंडल का गठन किया जायेगा तो यह विधेयक अपने आप में सफल रहेगा और इसके उद्देश्य की पूर्ति कर सकेंगे। धन्यवाद
    

श्री रमाशंकर चौधरी (लहार) : सभापति महोदय, मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं। सभापति महोदय, पहले हमारा देश खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भर नहीं था लेकिन कांग्रेस सरकार की नीतियों से जिनता विकास हुआ हैं उसके कारण प्रदेश और देश खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भर हुआ है। आवश्यकता इस बात की है कि भूमि का काफी विकास हो जिसके लिए इस निगम की आवश्यकता है। जब निगम बना दिया तो प्रभावी काम करने के लिए उसकी व्यवस्था में सुधार लाना उचित था। उसी को देखते हुए हमारे कृषि मंत्री ने अध्यक्ष और अन्य सदस्यों का प्रावधान जोड़ा है। किसी भी प्रजातांत्रिक सरकार के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी शासन में हो, ज्यादा से ज्यादा जन-प्रतिनिधियों को काम करने के लिए मौका मिले और अधिकारों का विकेन्द्रीयकरण किया जाये। आज के व्यस्त जीवन में शासकीय कार्य इतना बढ़ा है कि पूरे दिन में फाइले मंत्री लोग नहीं निपटा सकते। ऐसी स्थिति में यह संशोधन किया जाना जरूरी था। मैं इसका स्वागत और समर्थन करता हूं और सम्माननीय विरोधी पक्ष के लोगों को विश्वास दिलाना चाहूंगा कि शासन ऐसे लोगों को इसमें कतई नहीं लेगा जो आपत्तिजनक होंगे। 
    

श्री चलाराम चन्दाकर (पाटन) : सभापति महोदय, कृषि मंत्री द्वारा जो विधेयक प्रस्तुत किया गया है, उसका मैं समर्थन करता हूं। कृषि मंत्री का लक्ष्य यह है कि इस निगम के माध्यम से प्रदेश में उत्पादन अच्छे ढंग से हो, उसका कार्य अच्छे डंग से चले। यह सोचकर अभी तक जो शासकीय व्यक्ति निगम के पदाधिकारी होते आये हैं उनको हटाकर प्रजातांत्रिक तरीके से कृषि मंत्री ने संक्रमों में लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों को इसका सदस्य बनाने का निर्णय लिया है, वह एक ऐसा कार्य है, जो हमारे इस बंजर भूमि के विकास के लिए, लघु सिचाई के लिए और उसके माध्यम से कृषकों को लाभान्वित करने के लिए यह बहुत ही उत्तम मार्ग है। इसका मैं हृदय से स्वागत करता हूं और मंत्री महोदय को धन्यवाद देता हूं।
    

श्री सुन्दरलाल पटवा : अध्यक्ष किसको बनाया है, नाम बता दीजिये। 
    

कृषि मंत्री (दिग्विजय सिंह) : बताते हैं।
    

सभापति महोदय : मैं मंत्री जी से कहूंगा कि खड़े होकर जवाब दें।
    

श्री दिग्विजय सिंह : सभापति महोदय, विरोधी पक्ष के नेता ने जो सवाल रखा है। हमने अध्यक्ष एक ऐसे व्यक्ति को बनाया है, जो स्वयं किसान है। जो चम्बल सिंचित क्षेत्र के अंदर इस विकास निगम से लाभान्वित हुआ है। वह व्यक्ति श्री महेन्द्रसिंह तोमर हैं।
    

श्री लक्ष्मीनारायण शर्मा (बेरसिया) : सभापति महोदय, माननीय कृषि मंत्री ने यह जो विधेयक पैश किया है, मैं इसका हृदय से स्वागत करता हूं। लेकिन शायद यह बात और कहता कि इसी सदन के माननीय सदस्य श्री रघुनंदन प्रसाद वर्मा, जो एस्टीमेट कमेटी के चेयरमेन रहे हैं, इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया है कि .....
    

श्री रघुनंदन वर्मा : सभापति महोदय, पांइट ऑफ आर्डर। मैं एस्टीमेट कमेटी चेयरमेन नहीं था।
    

श्री लक्ष्मीनारायण शर्मा : सभापति महोदय, मेरी जानकारी असत्य हो सकती है मुझे जानकारी है कि माननीय सदस्य इस एस्टीमेट के चेयरमेन थे।
    

श्री रघुनंदन वर्मा : सभापति महोदय, मेम्बर रहा हूं, अध्यक्ष नहीं था।
    

श्री लक्ष्मीनारायण शर्मा : धन्यवाद। मुझे जो जानकारी थी मैंने आपको बतायी। लेकिन जिस कमेटी में आप मेम्बर या सभापति थे, उस कमेटी की यह रिपोर्ट थी कि हमारे शासन के विभागाध्यक्ष या मंत्री अगर कार्पोरेशन के अध्यक्ष रहेंगे तो फिर कार्पोरेशन के बारे मे इस विधान सभा में चर्चा होगी तो चर्चा के समय काफी कठिनाई खड़ी होगी क्योंकि मंत्री जी किस हैसियत से उत्तर देंगे। एक स्थान पर वे ही उस निगम के अध्यक्ष हैं। माननीय पटवा जी याद दिला रहे हैं कि उपक्रम समिति के आप अध्यक्ष थे और उसकी रिपोर्ट थी। इस कमेटी की जो रिपोर्ट थी, वह सिद्धांततः हम स्वीकार करें, हर निगम के बारे में, ऐसा मेरा निवेदन है। अभी तक आपने जिन निगमों में या जिन संस्थाओं में एडहाक एपाइंटमेंट किये, नियुक्ति की हैं, वह एक पक्षीय हैं। प्रजातंत्र में एक पक्षीय लोगों को नियुक्त करके आप इस प्रजातन्त्र की गाड़ी को ठीक ढंग से नहीं चला सकते। मेरा यही निवेदन है। अगर इसको ठीक से चलाना हैं तो जन प्रतिनिधियों को इनमें रखिये जो लोग इससे लाभ लेने वाले है, इससे प्रभावित होने वाले है, उन्हें रखिए। आपने उनको रखा है इसके लिये आप बधाई के पात्र है। आगे इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि इन निगमों में उन्हें रखे जो प्रतिष्ठित लोग है, उनको उसमें शामिल करेंगे संचालक मंडलों में, तो कार्य में आपकी ओर सुविधा होगी। इन शब्दों के साथ में इस संशोधन विधेयक का समर्थन करता हूं।
    

श्री कपूरचन्द धुवारा (मलेहरा) : माननीय सभापति महोदय, मंत्रीजी ने जो संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया है, वास्तव में जनप्रतिनिधियों को कार्य सौपने का एक रास्ता हैं। वैसे इस सम्बन्ध में मेरी मान्यता यह है कि अभी तक जो भी राजनीतिक दल रहे हैं, निगमों का उपयोग उन्होंने इसी रूप में किया -
‘अन्धे बांटे रेवड़ी चिन्ह चिन्ह के देय।’
    

वैसे सभापति महादेय, अर्जुनसिंह सरकार कितने भी निगम स्थापित करे निगमों के भरोसे सरकार चलने वाली नहीं है। कितने विधायकों को नियमों का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाइये ये सरकार बचेगी यह सम्भव दिखाई नहीं देता वैसे जिस मंशा से यह संशोधन विधेयक रखा गया है मैं उसका समर्थन करता हूं।
    

श्री सुन्दरलाल पटवा (सिहोर) : सभापतिजी, मैं तो इस संशोधन विधेयक पर कुछ कहना नहीं चाहता था लेकिन हमारे दल के एक सदस्य श्री विपटजी ने समर्थन करते हुए कहा कि जिस भावना से यह संशोधन लाया गया है उसी भावना से उसको लागू करें इसीलिये मैं बोलने के लिये बाध्य हुआ।
     

सभापति महादेय : यानि आपकी प्रेरणा का श्रोत विपटजी हैं।
  

श्री सुन्दरलाल पटवा : जी हां। संशोधन में उद्देश्य और कारण जो लिखें है उसमें संचालन में सक्रियता आए यह लिखा है लेकिन अगर मैं एक सवाल पूछूं तो क्या उसका जवाब आपके पास है कि ऐसा कौन-सा आसमान फटने वाल था कि आप 2-1 महीने के लिये नहीं रूक सकते थे 77 का यह बिल है 1-2 महीने रूक कर विधेयक लाकर इस संशोधन को लागू करते, इस बात का आपके पास युक्तियुक्त जवाब नहीं है। आपको किसी न किसी सदस्य को एकोमडेट करना हैं और आपने इस बात को दरगुजर करते हुए नमक मिर्चीं की तरह आर्डिनेन्स का उपयोग किया और कहा कि ऐसा है, वैसा है, इस प्रकार परिवर्तन लागू करना है, हमारी ये मंशा है, क्षेत्र के लोगों को ओर जन प्रतिनिधियों को लाभ पहुंचाना है। अगर आप यह महसूस करते है कि मंत्रियों के बजाय विशेंषज्ञ और अन्य लोग ही डायरेक्टर्स रहे यह प्रावधान आप उपयुक्त समझते है तो अन्य निगमों के बारे में आपको यही प्रावधान लागू करने में क्या हिचकिचाहट है। पिछले विधानसभा सत्र में आपने एक नया निगम बनाने का बिल पारित करवाया मैंने उस समय भी आग्रह किया था और शायद किसी सदस्य ने संशोधन भी रखा था कि मंत्री को निगम का चेयरमेन नहीं होना चाहिये, यह रिपोर्ट भी पी.यू.सी. की है लेकिन उस समय आप उस रिपोर्ट को भी लागू करने के लिये तैयार नहीं हुए लेकिन बाद में आपको किसी सदस्य को उसमें एकोमोडेट करना था, आप निगमों को राजनीति का चारागाह न बनाएं जैसा कि नागेन्द्रसिंह जीं ने कहां, कैसी शुद्ध भावना है आपकी, कैसे काम निगमों का चले आपके कृत्यों से यह दिग्दर्शित तो हों, मैं विपटजी से कहूंगा कि वे अपने ख्यालात में संशोधन कर लें।
    

श्री पुरूषोतमराव विपट : सभापति महोदय, मन्त्रीजी दिखते सीधे-सीधे हैं इसलिए मैंने कह दिया था। 
    खाद्य मन्त्री (श्री बालकवि बैरागी) : मन्त्रीजी से ज्यादा सीधे-सीधे सुन्दरलाल पटवाजी दिखते हैं, लेकिन वे ऐसे है क्या ?
    

श्री पुरूषोतमराव विपट : श्री बालकवि बैरागी से मुझे तो सबसे ज्यादा सीधे आप दिखते है। 
    

श्री सुन्दरलाल पटवा : मैं तो जैसा दिखता हूं वैसा ही हूं लेकिन बैरागीजी अगर आपको अनुभव नहीं हैं तो हो जायेगा। लेकिन सामने का चेहरा (श्री दिग्विजय सिंह की और इंगित करते हुए) खूबसूरत और सीधा-सीधा दिखता है, वास्तव में अन्दर से मामला कुछ और है। संशोधन का जो प्रस्ताव हैं जिसके संबंध में आर्डिनेन्स जारी किया गया, सभापति महोदय, आर्हिनेन्स तो एक्सेप्शनल प्रावीजन के रूप में प्रयोग किया जाता है जबकि इस हेतु इसको जारी किये जाने का कतई कारण नहीं था। पार्टी के असंतुष्टों को एकोमोडेट करने का यही सब इस सरकार में चला हुआ है। मंत्रिपरिषद में बैठे हुए विशिष्ट गुट के लोग अपनी पार्टी के लोगों के हित के लिये जुटे रहे और इसीलिये इन सब प्रावधानों का खुलकर दुरूपयोग करने में लगे हैं इसमें बड़े लच्छेदार शब्द डालें हैं इनके कारण आपके ख्यालों पर परदा नहीं पड़ सकता है। इसका ये उद्देश्य नहीं है कि इसका संचालन ठीक से हो सके। भूमि विकास के बारे में ऐसी कौन सी क्वालिफिकेशन्स की योग्यताओं की आवश्यकता है, जिसके कारण कि आपने श्री महेन्द्रसिंह को उसका अध्यक्ष बनाया है। अगर यही सब करना था तो ये विधान सभा के सत्र में आप बिल लाकर इस संशोधन को लागू कराते। इसके लिये यदि 2 महीने रूक जाते तो ऐसा कौन सा आसमान फट रहा था। मैं सिद्धांत रूप से श्री रघुनंदन वर्मा जी की रिपोर्ट से सहमत हूं। ऐसी कौन सी वजह थी कि दूसरे निगमों में, जो आपके विभाग में हैं उन निगमों में मंत्री चेयरमेन रहेगा, इस प्रकार के संशोधन को आपने अस्वीकार किया है। यह आपकी नीयत का सवाल नहीं है। यह आपको सुविधाजनक लगता है। इस तरह से आप फायदा ले सकते हैं इस इरादे से आप इसको लाये हैं। सिद्धांततः हम उससे सहमत हैं। मैं उसका सबसे ज्यादा समर्थक रहा हूं। जिस समय आपके दल की सरकार थी, हमारे दल की सरकार थी, उस समय भी मैं इस रिपोर्ट को लागू करने की हिमाकत विधान सभा में करता रहा। आपने इसे जिस इरादे से किया है वह इरादा नेक नहीं हैं जब तक हम इन कारपोरेशन और पब्लिक अंडर टेकिंग को राजनीतिक चारागाह बनाते रहेंगे तब तक इनके काम में सुधार होने वाला नहीं है। 
    

राज्यमंत्री खाद (श्री दिग्विजय सिंह) : सभापतिजी माननीय पटवाजी ने बहुत ही जोश खरोश का भाषण दिया। मुझे खूबसूरत कहां उसके लिये धन्यवाद।
    

राज्यमंत्री खाद (श्री बालकवि बैरागी) : सभापतिजी जिस समय पटवाजी और दिग्विजयसिंहजी एक दूसरे को खूबसूरत और नम्र कह रहे थे उस समय शीतला सहायजी ऐसे आए जैसे कि नेपथ्य से कोई खलनायक।
    

राज्यमंत्री कृषि (श्री दिग्विजय सिंह) : सभापति जी, मैं पटवाजी को आश्वस्त कराना चाहता हूं कि जिस भावना के साथ इस संशोधन विधेयक को रखा गया हैं उस भावना में तिलमात्र भी किसी प्रकार का भेद नहीं है। एक अच्छी भावना के साथ कि इस भूमि विकास निगम का कार्य सुचारू रूप से चल सके, इस निगम के अन्दर ऐसे व्यक्तियों को भी संचालक मंडल में रखा जा सके जो स्वयं एक किसान हों, जिन्होंने अपनी भूमि पर भूमि विकास निगम का कार्य करवाया हो, उसकी अच्छाइयां समझते है, उसकी राय को दृष्टिगत रखते हुए एक क्रिटिक्ल एसेसमेंट संचालक मंडल के अन्दर दे सकें। सभापतिजी, जिस पब्लिक अंडर टेकिंग्स की रिपोर्ट का आपने उल्लेख किया है, वह जनता पार्टी का शासन आने के पूर्व यह रिपोर्ट आ चुकी थी। मैं पटवाजी और जनता पार्टी के माननीय सदस्यों से पूछना चाहता हूं कि उस पब्लिक अंडर टेकिंग कमेटी की रिपोर्ट का क्या आप लोगों ने पालन किया ? आपने सारे निगमों का शासकीयकरण किया। जिन व्यक्तियों का लाभ ले सकते थे, जिनको संचालक मंडल में रखा जा सकता था उनको भी उसमें बैठने का मौका नहीं दिया गया। मुझे इस बात का दुख है कि माननीय पटवाजी और विपट जी ने जिस बात का स्वागत किया, जिस विकेन्द्रीकरण का स्वागत किया जिन्होंने इस डिबेट को ओपन किया, उन्होंने मुझ पर आक्षेप लगा दिया कि मैं अक्षम हूं। यह अक्षमता का प्रतीक है या दूरदर्शिता का प्रतीक हैं। यह एक डी-सेन्ट्रालाइजेशन हैं।
    

श्री सुन्दरलाल पटवा : आपको यह गलत फहमी क्यों है कि हर खूबसूरत आदमी सक्षम होता है।
    

राज्यमंत्री कृषि (श्री दिग्विजय सिंह) : मुझे आपको देखकर गलतफहमी नहीं होती हैं। इसमें अक्षमता की बात नहीं है। हम चाहते है कि विकेन्द्रीकरण हो, ज्यादा से ज्यादा ऐसे व्यक्ति जो कि स्वयं निगम के भागी हो, उन लोगों को संचालक मंडल में और अध्यक्ष रहने का मौका मिल सके। जैसा पटवा जी ने कहा कि ऐसा कोनसा पहाड़ टूटा जा रहा था, सभापति जी मैं आपको स्मरण दिलाना चाहता हूं कि पिछली विधानसभा के समय भी इस विधेयक का संशोधन प्रस्तुत किया गया था. विधेयक पुरस्थापित हो चुका था, किन्तु समयाभाव के कारण पास नहीं हो पाया। उसमें कोई दुर्भावना नहीं थी। भावना यही थी कि निगम का कार्य ठीक तरह से चल सके। यही एक समय होता है जिसमें निगम का कार्य कठिन होता है। इसलिये इन सारी बातों को दृष्टिगत रखते हुए और चूंकि आपकी स्वयं की तरफ से इस प्रकार का संशोधन सीड्स कार्पोरेशन के संबंध में आपकी तरफ से आया था, चूकि आप स्वयं ने यह स्वीकार किया था, इसलिए यह समझकर कि आप स्वीकार कर रहे है इस विधेयक को आर्डिनेस में परिवर्तन करने में कोई पहाड़ टूटने वाला नहीं है। निगम का कार्य ज्यादा गति से चल सके सुचारू रूप से चल सके इसलिए आर्डिनेस लाने पर मजबूर होना पड़ा। यहां पर सीड्स कार्पोरेशन के बारे में कहा है। मैं बताना चाहता हूं कि सीड्स कार्पोरेशन एक ऐसी संस्था है, जो कि हाइली टेक्नीकल है उसमें मंत्री का रहना इसलिए भी आवश्यक है कि हमको सम्मेशन शीट अलग-अलग जगहों से मंगाना पड़ती है एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी से आई. सी. ए. आर. आदि से। उसके लिए आवश्यक हो जाता हैं कि इनिसियल स्टेजेस में चेयरमेन कृषिमंत्री रहे। मैं दावे के साथ कहना चाहता हूं कि मै इस बात से पूरी तरह से सहमत हूं कि कोई भी कार्पोरेशन का चेयरमेन भारसाधक मंत्री नहीं रहना चाहिए। अपवाद स्वरूप रह सकता है लेकिन सिद्धांत रूप से नहीं।
    

श्री सुन्दरलाल पटवा : उसमें हाइली टेक्नीकल रखना चाहते है तो उसमें माननीय टुमनलाल को रखिए, झुमकलाल जी को रखिए। आपके पास आपसे ज्यादा कोई टेक्नीकल है ही नहीं यह आपकी गलतफहमी है।
    

राज्यमंत्री कृषि (श्री दिग्विजय सिंह) : मुझे गलतफहमी नहीं हैं। मन्त्री का पद किसी व्यक्ति का पद नहीं है। भार-साधकमन्त्री का होना चाहिए जिससे इनिसियल स्टेजेस पर कार्य हो सके। माननीय सभापति जी जो माननीय सदस्यों का सुझाव आये उनका मैं स्वागत करता हूं। जो पानी ठीक तरह किसानों को मिलना चाहिए उनके बारे में मैं जानकारी देना चाहता हूं कि हमारी सरकार ने वाटर मेनेजमेंट सर्विसेस कायम करने का निर्णय लिया है  यह एक प्रगतिशील कदम है। इसको किसानों को पानी पहुंचाने के लिए रेग्यूलेंटिग करने के लिए कायम किया गया है। जो प्रभाव में आने वाली है। में इतना ही कहना चाहता हूं। और में माननीय सदस्यों से निवेदन करना चाहता हूं कि इस संशोधन विधेयक का स्वागत करें।
    

सभापति महोदय : प्रश्न यह है कि म. प्र. राज्य भूमि विकास निगम (संशोधन) विधेयक 1981 (क्रमांक)-4 सन् 1981 पर विचार किया जाय।

प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।