Digvijaya Singh
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23 फ़रवरी 1982 तारांकित प्रश्न पर चर्चा कपास के किसानों को व्यापारियों से वाजिब दाम

23 फ़रवरी 1982 तारांकित प्रश्न पर चर्चा कपास के किसानों को व्यापारियों से वाजिब दाम

दिनांक 23.02.1982
तारांकित प्रश्न पर चर्चा-कपास के किसानों को व्यापारियों से वाजिब दाम।
मध्यप्रदेश विधानसभा
 

       1. श्री के. एन. प्रधान : क्या कृषि मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या सीहोर जिले की नसरूल्लागंज मंडी समिति ने माह नवम्बर 1981 में एक प्रतिवेदन प्रस्तुत कर शासन से शिकायत की है कि मंडी में किसानों को उनकी कपास की उपज के व्यापारियों से वाजिब भाव नहीं मिल पा रहे हैं इसलिये कॉटन कॉरपोरेशन अथवा अपेक्स मार्केटिंग द्वारा खरीदी की व्यवस्था कराई जाये ? (ख) यदि हां, तो शासन ने इस शिकायत पर क्या और कब से व्यवस्था कराई हैं ?

    कृषि मंत्री ( श्री दिग्विजय सिंह ) : (क) जी नहीं। (ख) प्रश्न उपस्थित नहीं होता।

    अध्यक्ष महोदय : प्रधान साहब, जब से विधान सभा शुरू हुई नम्बर एक पर आप ही हैं।

    श्री रमाशंकर सिंह : इस बार मेडल प्रधान जी को दीजिये।

    श्रीमती जयाबेन : अध्यक्ष महोदय, प्रधान जी को सोने का मेडल देंगे क्या ?

    अध्यक्ष महोदय : देखिये इनके नम्बर पर और आपके नम्बर पर भी सोचूंगा। 

    श्री के. एन. प्रधान : अध्यक्ष महोदय, वैसे नसरूल्लागंज मंडी समिति ने मेरी जहां तक जानकारी है कई बार प्रस्ताव भेजा है, शासन से निवेदन किया गया है कि वहां पर रूई के भाव किसानों को नहीं मिल पाते, इसलिये कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया या अपेक्स मार्केटिंग द्वारा खरीदी की प्रबन्ध करेंगे तो किसानों को उचित मूल्य मिल सकता है। तो मंत्री महोदय से मैं जानना चाहता हूं कि इस दिशा में कुछ प्रयास करेंगे आप ?

    श्री दिग्विजय सिंह : माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्य को बताना चाहूंगा कि नसरूल्लागंज मंडी समिति द्वारा मार्केटिंग फेडरेशन से पत्र लिखा है, कॉटन कॉर्पोरेशन को पत्र लिखा था कि नसरूल्लागंज मंडी में कपास की काफी आवक होती है और चूंकि कॉटन कॉर्पोरेशन द्वारा खरीद नहीं होती है उसकी वजह से किसानों को अच्छे भाव नहीं मिलते हैं। शासन ने इस बारे में पहल की है। केन्द्रीय शासन के अधिकारियों से भी मैंने चर्चा की है लेकिन चूंकि कॉटन कॉर्पोरेशन केन्द्र सरकार की संस्था है जो कि मुख्य रूप से व्यापारिक संस्था है। वे उन्हीं स्थानों पर अपनी खरीद चालू करते हैं जहां पांच हजार टन से, 50 हजार कि्ंवटल से अधिक कपास की आवक होती है। नसरूल्लागंज की आवक के फिगर्स मण्डी कमेटी के हैं, वह 11-12 हजार कि्ंवटल के आसपास के हैं। फिर भी निश्चित ही हम सहमत हैं कि किसानों को सही भाव मिल सकें। वहां पर कॉटन कॉर्पोरेशन या मार्केटिंग फेडरेशन के माध्यम से खरीद होना चाहिये इस बारे में हम पहल कर रहे हैं, प्रयास कर रहे हैं लेकिन अभी खरीद मूल्य प्रारम्भ नहीं हो पाया है।

    श्री के. एन. प्रधान : क्या शासन ने इस बात की जानकारी ली है कि एक्चुअली नसरूल्लागंज मंडी में कम कपास आना इसलिए दिखाई देता है क्योंकि खातेगांव और हरदा और सीहोर पास पड़ते है। किसान अपनी उपज वहां भी ले जाते हैं। अगर नसरूल्लागंज में और खरीदी का प्रबंध हो जावे तो निश्चित ही जितनी मात्रा में चाहिए वह मिल सकता है ?

    श्री दिग्विजय सिंह : खातेगांव और हरदा में पहले से इतना कपास नहीं आता है कि वहां मुनाफे से कायम किया जावे। खातेगांव में सेन्टर खुला है, वहां 3।। हजार टन की आवक है, हरदा में 7,800 की आवक है। वहां केन्द्र चालू होना चाहिए, मैं पूरी तरह से सहमत हूं। कॉटन कॉरपोरेशन से आग्रह कर सकते हैं। इस ओर हम लोग फिर से प्रयास करेंगे और इस बात के लिए कहेंगे कि यहां पर भी खरीदी चालू की जानी चाहिए।

    श्री सिद्दमल : यह कपास की बात है। कृषि उपज मंडियों मे गेहूं का उचित मूल्य न मिलने के कारण बाहर दो नम्बर में बिक जाता है उससे शासन को सेल्स-टैक्स का नुकसान हो रहा है इसलिए गेहूं के बारे में व्यवस्था की जायेगी कि वह कृषि उपज मंडी में बिके ताकि किसानों को सही व उचित मूल्य मिल सके।

    श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, यह कपास से संबंधित प्रश्न है। गेहूं से संबंधित प्रश्न नहीं है।    

    श्री सिद्दमल : कृषि उपज मंडियों से संबंधित है।

    अध्यक्ष महोदय : कपास भी जमीन से पैदा होता है, गेहूं भी जमीन से पैदा होता है।

    श्री सिद्दमल : उसमें मंडी और शासन दोनों को नुकसान है तो क्या शासन द्वारा किसानों को गेहूं का अच्छा भाव मिल सके इसकी व्यवस्था की जावेगी ?

    श्री दिग्विजय सिंह : माननीय सदस्य सुझाव देंगे तो हम उस पर अवश्य विचार करेंगे।