Digvijaya Singh
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04 अक्टूबर 1982 चम्बल आयाकट योजना पर व्यय राशि

04 अक्टूबर 1982 चम्बल आयाकट योजना पर व्यय राशि

दिनांक 04.10.1982
चम्बल आयाकट योजना पर व्यय राशि
    चम्बल आयाकट योजना के प्रथम चरण में व्यय की गई राशि एवं द्वितीय चरण हेतु प्रस्तावित धनराशि।

1. श्री रमाशंकर सिह : क्या कृषि मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) चम्बल आयाकट योजना के प्रथम चरण में किन-किन विषयों तथा कार्यों पर कुल कितनी राशि का आवन्टन था ? उसमें से 31-7-82 तक कितनी राशि का व्यय हुआ तथा भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रतिशत कितना रहा ? (ख) चम्बल आयाकट योजना के द्वितीय चरण का कुल आकार एवं विभिन्न कार्यों पर कितना-कितना प्रस्ताव म.प्र. शासन एवं विश्व बैंक द्वारा पूर्व में सहमत माना गया ? (ग) विश्व बैंक द्वारा कितनी राशि मंजूर की गई थी एवं शासन द्वारा कितनी राशि उपलब्ध कराई जा रही है ? चम्बल आयाकट का द्वितीय चरण कब प्रारम्भ हो रहा है ?
    कृषि मंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : (क) संलग्न परिशिष्ट में दिया गया है। (ख) पूर्व में राज्य शासन एवं विश्व बैंक के बीच परियोजना के आकार पर कोई सहमति नहीं हुई थी. राज्य शासन एवं विश्व बैंक के बीच जून 1982 में सहमति प्राप्त परियोजना का आकार रू. 55.63 करोड़ की है। परियोजनान्तर्गत विभिन्न कार्यों पर प्रस्तावित राशि संलग्न प्रपत्र-3 में दर्शाई 
         परिशिष्ट ‘‘क’’                    परिशिष्ट ‘‘ख’’
गई है. (ग) जून 1982 में मध्यप्रदेश शासन, भारत सरकार एवं विश्व बैंक के बीच हुई चर्चा के आधार पर विश्व बैंक चम्बल आयाकट परियोजना के लिए द्वितीय चरण हेतु 3.1 करोड़ अमरीकी डालर की सहायता प्रदान करेगा। राज्य शासन परियोजना के लिए रू. 55.63 करोड़ की राशि उपलब्ध कराएगा जिसमें उपरोक्त विश्व बैंक सहायता सम्मिलित है, (घ) विश्व बैंक से अनुबन्ध अनुसार चम्बल आयाकट परियोजना का द्वितीय चरण दिनांक 1 जुलाई, 1982 से प्रारम्भ हो चुका है।

    श्री रमाशंकर सिह : माननीय अध्यक्ष महोदय, क्या माननीय मंत्री जी यह बताने की कृपा करेंगे कि चम्बल आयाकट योजना का प्रथम चरण 30-6-1982 को समाप्त हुआ। विश्व बैंक द्वारा चम्बल आयाकट योजना जो प्रस्तावित की गई थी मध्यप्रदेश शासन द्वारा उस समय सेकेण्ड फेज के लिए कितनी राशि प्रस्तावित की गई थी ? यह जब पूर्व में ही मध्यप्रदेश शासन द्वारा प्रस्ताव हुआ था आयाकट चम्बल योजना द्वारा तब।

    श्री दिग्विजय सिंह : जो पूर्व में योजना तैयार की गई थी। 82 करोड़ की थी।

    श्री रमाशंकर सिह : अध्यक्ष महोदय, आप देखें कि पूर्व में जो प्रस्तावित योजना थी उसके सेकेण्ड फेज के लिए 81 करोड़ रूपया था। 30-6-82 को इनका फस्ट फेज समाप्त हुआ और जुलाई 82 तक मध्यप्रदेश शासन द्वारा चूंकि विश्व बैंक को इस बात का आश्वासन नहीं मिल सका कि कितनी राशि शासन द्वारा दी जा रही है इसलिए सेकेण्ड फेज डिले हुआ तो क्या माननीय मंत्री महोदय इस बात की जानकारी देंगे कि एक तो डिले जो हुआ उसके क्या कारण थे। दूसरा प्रस्तावित योजना के आकार अनुकूल मध्यप्रदेश शासन ने राशि मुहय्या क्यों नहीं करा पाया ?

    श्री दिग्विजय सिह : मैं माननीय सदस्य को आपके माध्यम से बताना चाहूंगा कि जब हमारा प्रथम चरण समाप्त हुआ तो इसका मतलब ये नहीं होता कि सारा काम चम्बल आयाकट का बन्द हो गया। विदेशी सहायता प्राप्त हुई थी समाप्त हो गई थी लेकिन हमारे बजट में जो प्रौवीजन था उसके अन्तर्गत हमारा प्रावधान रखा था और कार्य चलता रहा। जहां तक योजना का आकार छोटा करने का प्रश्न है, आपको अच्छी तरह से जानकारी है कि वर्ष 1978-79, 1979-80 में भंयकर अकाल पड़ा था और शासन के स्त्रोतों पर अधिक से अधिक राशि राहत कार्यो पर व अन्य सुविधाएं देने पर खर्च की गई इस कारण हमें इनके साधन जुटाने में थोड़ा समय लगा। हमने इस बात का प्रयास किया है कि आकार हम छोटा जरूर कर दे लेकिन उसमें जो जरूरी चीजे है जिससे कि इम्प्लिमेन्टशन प्रोडक्शन होना है, जो फेस-2 का प्रोग्राम है, यह मुख्य रूप से जो टेल एण्ड एरिया है अम्बाह और अटैर का,  उसमें ट्यूबवेल से चम्बल की नहरों का आगमेंटेशन प्रोग्राम है। इसका हमने प्रयास किया है कि इसमें कमी न हो। मैं माननीय सदस्य महोदय को आश्वस्त करना चाहता हूं कि इस बात का हम प्रयास करेंगे कि उससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ हो।

    श्री रमाशंकर सिह : माननीय अध्यक्ष महोदय मैं आपका संरक्षण चाहता हूं। माननीय मंत्री जी ने जो जवाब दिया उसमें स्पष्ट किया है कि जैसे कि फर्स्ट फेस का सिंचाई विभाग का चकडेनेज का मामला है, उसमें एप्रेजल रिर्पोट में प्रस्तावित राशि 2577 लाख और जुलाई 1982 तक 3284 लाख का व्यय था और आवन्टित राशि में से खर्च का प्रतिशत 127 है इसी प्रकार से लोक निर्माण विभाग का 107.42 प्रतिशत है, कृषि विभाग को 121.36 प्रतिशत है। इसी प्रकार से सी डी ढांचे का कार्य सुदृढ़ीकरण उसका सौ प्रतिशत, कांक्रीट लाइनिंग के काम का सौ प्रतिशत है भूमि पहुंच में सीमेंट कांक्रीट में रेखाकंन सौ से ऊपर प्रतिशत है, जल नालियों का उप-नहरों में परिवर्तन का प्रतिशत 122 से ऊपर है इसी प्रकार चकडेनेज के काम में 129 प्रतिशत है। मिटटी के काम में, जो कि लोक निर्माण विभाग द्वारा किया गया है प्रतिशत 107 है, अक्षेत्र विकास में भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रतिशत 117 और बीहढ़ कटाव नियन्त्रण का प्रतिशत 422 है।
    तो जब भौतिक लक्ष्य इतनी बखूवी से आपने प्राप्त किये हैं तो इसको देखते हुए कि चम्बल आयाकट के प्रथम फेस के भौतिक लक्ष्यों को शासन ने या विभागों ने अच्छी तरह से प्राप्त किया है कुछ मामलों को छोड़कर क्या शासन की ओर से उसके लिए अतिरिक्त प्रयास होंगे कि जो आकार छोटा हुआ है उस आकार के छोटे होने से जो परिवर्तन करने पड़े है, उसकी पूर्ति सेकेण्ड फेस के अंतिम वर्षो में  या अन्तिम समय में जब पूरा होने लगे तब उस आकार की पूर्ति कर दी जाय इसके लिए वित्तीय प्रयास आपके द्वारा अलग से होंगे ?

    श्री दिग्विजय सिह : माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रयास अवश्य किए जायेंगे लेकिन अतिरिक्त वित्तीय साधन जूटाने के संबंध में अभी मैं कुछ नहीं कह सकता, उस समय जैसे वित्तीय साधन होंगे तभी कहना संभव होगा।

    श्री हीरालाल सोनबोइर  : माननीय अध्यक्ष, महोदय, मैं मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि जब योजना बनायी जाती है, सर्वे किया जाता है तो उसको कई चरणों में बांटा जाता है- प्रथम, द्वितीय और तृतीय। फिर उसके अनुसार कार्य भी उतना माना जाता है और कार्य के मान से रकम भी उतनी अनुमानित की जाती है तो यह जो अधिक प्रतिशत आया है यह अनुमानित राशि से ज्यादा है तो क्या माननीय मंत्री जी बताने की कृपा करेंगे कि अधिक राशि कुछ चरणों के निर्धारित कार्यक्रम में लगी या दूसरी काम में लगी और क्या उसकी मंजूरी शासन से ली गयी थी ?

    श्री दिग्विजय सिह : माननीय अध्यक्ष महोदय, स्वाभाविक है कि जब योजना बनती है तो उसका मूल्य बढ़ जाता है लेकिन मैं माननीय सदस्य को जानकारी देना चाहूंगा कि इसमें भौतिक लक्ष्यों में वृद्धि हुई है, जो हमें काम करना था, उससे कहीं ज्यादा काम हमने किया हैं।

     श्री रमा शंकर सिंह : आप इनके चक्कर में मत पड़िए साहब।

    श्री रमा शंकर चौधरी : माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्रीजी से यह जानना चाहूंगा कि प्रथम और द्वितीय चरण में मध्यप्रदेश शासन द्वारा कितनी धनराशि दी जाना निश्चित की गई थी और पहले और दूसरे चरण में राज्य शासन द्वारा कितनी राशि दी गयी है, इस चम्बल आयाकट योजना में ?

    श्री दिग्विजय सिह : माननीय अध्यक्ष महोदय,
    प्रथम चरण के लिए जितनी धनराशि का प्रावधान किया जाना था, उसकी पूर्ति की गई है। जहां तक दूसरे चरण का प्रश्न है तो यह दूसरा चरण जुलाई, 1982 को अभी एग्रीमेंट हुआ है, उसके लिये जितनी राशि का एग्रीमेंट हुआ उसके लिये प्रावधान किया है।

    श्री रमा शंकर सिंह चौधरी : एक प्रश्न और उद्भूत होता है इससे ?

    अध्यक्ष महोदय : नहीं । सप्लीमेंटरी पर सम्पीमेंटर सवाल नहीं होंगे।

    श्री मुंशीलाल : मैं माननीय मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि द्वितीय चरण में जुलाई, 82 को कार्य प्रारम्भ हो चुका है और उसके तहत चंबल आयाकट कार्य भी प्रारम्भ किया जा रहा है तो यह कार्य कब तक पूर्ण कर लिया जायेगा। मेरे कहने का मतलब यह है कि द्वितीय चरण में जो चम्बल आयाकट के तहत सिंचाई योजनायें लिफ्ट इरीगेशन की बरेखा, भैंसा और कनेरा आदि की जो सिंचाई योजनाये अधूरी पड़ी हुई हैं और जिनके लिये प्रशासकीय स्वीकृति न मिलने के कारण तथा पैसौं के आभाव में हजारों एकड़ जमीन की जो सिंचाई हो सकती है नहीं लिया जा रहा है इसका क्या कारण है ? क्या इन योजनाओं को भी हाथ में मंत्री जी लेंगे और कार्य प्रारम्भ करवायेंगे ?

    श्री दिग्विजय सिह : माननीय अध्यक्ष महोदय, द्वितीय चरण का कार्य जुलाई 86 तक पूरा करने का हमारा लक्ष्य है। लेकिन आपने जो लिफ्ट इरीगेशन की बात कही तो वह इसके अंतर्गत नहीं ली गई है। इसमें मुख्य रूप से ट्यूव वैल और गोहद की जो सिंचाई योजनायें है उनके आगमेटशन के लिये सुधार के लिये ही योजना ली गई हैं अगर कोई स्पेसिफिक सवाल आप पूछेंगे तो उत्तर दूंगा।

    श्री मुंशीलाल : पैसों के अभाव में तथा प्रशाकीय स्वीकृत न होने के कारण इनको सम्मिलित नहीं किया गया तो क्या इनको भी सम्मिलित करेंगे ?

    श्री दिग्विजय सिह : माननीय सदस्य को जानकारी नहीं है कि आयाकट का काम हमारा है और सिंचाई का काम हमारा नहीं है।

    श्री मुंशीलाल : जो चंबल आयाकट में मेडबंदी के लोक निर्माण विभाग पैसा खर्च कर रहा है तो क्या आयाकट में उन योजनाओं को शामिल करेंगे ?

    श्री दिग्विजय सिह : जब तक आप योजनाओं का नाम नहीं बतायेंगे तब तक मैं कैंसे जवाब दे सकता हूं।

    श्री मुंशीलाल : मैंने नाम बतायें है मैं एक प्रश्न और पूछना चाहता हूं।

    अध्यक्ष महोदय : नाम आप बाद में बता दें। अब और अधिक सवाल के लिये जिद न करें।
 वर्ष 81-82 में जिलेवार सिंचित तथा असिंचित भूमि में एक एकड़ पर गेहूं, चावल, चना, तुअर, सोयाबीन एवं ज्वार पर आई लागत एवं औसत पैदावार की मात्रा।

    2. श्री देवीलाल रेकवाल : क्या कृषि मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि सिंचित तथा असिंचित कृषि में एक एकड़ पर गेहूं, चावल, चना, तुअर, सोयाबीन, ज्वार पर कितनी लागत आती है तथा औसत पैदावार की मात्रा क्या रही उक्त जानकारी वर्ष 1981-82 के आधार पर चाहिए जिलेवार आंकड़े दें ?

    कृषि मंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : जिलेवार सिंचित एवं असिंचित फसलों को प्रति एकड़ काश्त पर लागत की जानकारी एकत्रित नहीं की जाती। वर्ष 1981-82 में गेहूं व चावल की सिंचित तथा चना, तुअर और ज्वार की असिंचित की जिलेवार औसत पैदावार की जानकारी, संलग्न प्रपत्र में दी गई है, सोयाबीन के आंकडे उपलब्ध नहीं है।

    श्री देवीलाल रेकवाल : अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्रीजी से यह जानना चाहता हूं कि उन्होंने मेरे प्रश्न के उत्तर में बताया है कि जिलेवार सिंचित एवं असिंचित फसलों की प्रति एकड़ काश्त पर लागत की जानकारी एकत्रित नहीं की जानी ?

    श्री दिग्विजय सिंह : अभी तक जो स्वीकृत अमला है और जो व्यवस्था चली आ रही है उसमें एवरेज ईल्ड और प्रोडक्शन की ही जानकारी रखी जाती है, आंकड़े नहीं निकाले जाते। लेकिन उत्पादन खर्च कितना आना है इसको एकत्रित करने के लिये हमारे कोई एजेन्सी नहीं है जिससे कि हम ये आंकड़े निकाल सकें। जो उत्तर दिया गया है उसमें कुछ प्रिंटिग मिसटेक रह गई है, इसके लिये हमने अलग से सुधार के लिये लिखकर दिया है।

    श्री देवीलाल रेकवाल : अगर आप जिलेवार नहीं बना सकते तो कम से कम प्रदेश स्तर पर आपने जानकारी इकट्ठी की होगी, वही बता दीजिये ?

    श्री दिग्विजय सिंह : हर जिले के लिये, हर जगह के लिये जो खर्च आता है वह अलग-अलग जगह होता है जैसे सीहोर में जो खर्च आता होगा वह बस्तर में नहीं आता होगा, वह भिन्न होगा। हमारे पास उत्पादन खर्च के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। लेकिन हम इस पर विचार कर रहें हैं कि इसके बारे में जब एग्रीकलचर प्राईस कमीशन मिनिमम सपोर्ट प्राईस तय करने के लिये हमसे पूछता हैं तब हम विचार करेंगे कि क्या विशेष एजेन्सी या सेल कायम करें जिससे हम फसल के बारे में प्रत्येक जिले के लिये प्रत्येक फसल का उत्पादन खर्च निकाल सकें।

    श्री देवीलाल रेकवाल : जो फसल आयेगी उसकी क्या लागत आयेगी रबी की फसल आने वाली है उसकी लागत एकत्रित करवा देंगे।

    श्री दिग्विजय सिंह : हमारे पास व्यवस्था नहीं है लेकिन हम विचार कर रहे हैं।

    श्री विनय दुबे : माननीय मंत्री जी ने बताया है कि प्रति एकड़ कास्त की लागत की जानकारी एकत्रित नहीं की जा सकती जब तक कि जानकारी नहीं मिलती तो किस आधार पर न्यूनतम मूल्य रखने की अनुशंसा की जाती है और उसका आधार क्या है।

    श्री दिग्विजय सिंह : हमारे पास कोई एजेन्सी नहीं है जिसके माध्यम से रखी जाती है।

    श्री सिद्धूमल : माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि सोयाबीन के डिमोटेशन प्लांट बनाये जाते हैं उन प्लांटों के लिये बीज व खाद की सबसिडी दी गई तो कितने प्लांट बनाये गये है और उनकी औसतन प्रति एकड़ कितनी पैदावार है।

    श्री दिग्विजय सिंह : यह प्रश्न डिमांटेशन से संबंधित नहीं है।

    श्री सिद्धूमल : इसका जवाब नहीं है मंत्री ने सोयाबीन की जानकारी दी मैं मंत्री महोदय से जानना चाहता हूं कि कृषि विभाग द्वारा इतना सारा खर्च करने पर भी उन प्लांटों की प्रति एकड़ पैदावार क्यों नहीं निकाली गई।
परिशिष्ट ‘‘ग’’

    श्री राम खेलावन : किसानों के खेत में प्रदर्शन के तौर पर प्लांट लगाये जाते है जो उनके प्लांट पर खेती की जाती है उनकी प्रति एकड़ पैदावार ओर उनका खर्च कितना आता है।

    श्री दिग्विजय सिंह : अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। हमने इस वर्ष से प्रत्येक डिमास्ट्रेशन में कितना उत्पादन आता है उसका प्रोडकशन कितना होता है, हर डिमास्ट्रेशन का अलग से रिकार्ड रखने के लिये निर्देश दिये जा चुके हैं और जो सुपरवाइजर है, एडिशनल डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर और जहां तक संचालक को भी निर्देश दिये हैं कि प्रत्येक डिमास्ट्रेशन के आंकड़े हमारे पास तैयार रखें।

    श्री नागेन्द्रसिंह : अध्यक्ष महोदय मंत्री जी एक किसान हैं मैं उनके अनुभव के आधार पर जानना चाहता हूं कि गुना जिले की औसतन लागत क्या है, पैदावार कितनी होती है इतना बता सकते हैं।

    श्री दिग्विजय सिंह : यहां पर एक कृषि मंत्री की हैसियत से बैठा हूं यदि निजी जानकारी जानना चाहते हैं तो बाहर बात करेंगे।

    श्री बाबूलाल गौर : क्या माननीय मंत्री महोदय किसान नहीं हैं क्या किसान के नाते स्थिति नहीं बता सकें।

    अध्यक्ष महोदय : उनका कहना है कि यदि मंत्री जी किसान है तो जवाब और भी अच्छा व्यवस्थित आयेगा। 

    श्री बाबूलाल गौर : यहां तो सब अनुभव बता दीजिए।

    श्री विक्रम वर्मा : जो असफल किसान होते हैं वह अच्छे कृषि मंत्री होते हैं।

    श्री विनय दुबे : यह परंपरा टूट रही है जनता पार्टी की यह परंपरा टूट रही है।

    श्री दिग्विजय सिंह : इसकी जानकारी नहीं है जहां तक सफलता असफलता का प्रश्न है इनके मापदंड से नहीं चलता है हमारा मापदण्ड तो जो किसान है उससे चलता हैं।

    श्री बालकवि बैरागी : माननीय अध्यक्ष महोदय, दिग्विजय सिंह जी सफल है कि असफल है उन्होंने जो उत्तर दिया है व हपेज 79 पर छपा है पौधा.... एक नई सफल है यह पौधावीन कौन सी सफल मध्यप्रदेश में पैदा हो गई यह क्या मामला है कौन सी नई फसल निकाली है।

    अध्यक्ष महोदय : आपका यह प्रश्न, प्रश्न ही बना रहेगा।

    श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, इस तरह की कोई फसल नहीं है, यह मिस प्रिन्ट है।

    श्री राम खेलावन : अध्यक्ष महोदय, जब कृषि मंत्री स्वयं किसान हैं तो उनके खेत की पैदावार एवं लागत प्रति एकड़ क्या है।

    अध्यक्ष महोदय : नहीं, यह प्रश्न नहीं आयेगा।

    श्री चन्द्रदर्शन गौड़ : मंत्री जी ने प्रश्न के उत्तर में पेज 77 पर जो परिशिष्ट है उसमें उन्होंने जिलेवार औसत पैदावार के बारे में बताया। जबलपुर जिले में जहां कृषि विश्वविद्यालय है और विभिन्न प्रकार के नये-नये बीजों का अनुसंधान किया जाता हैं, जमीन का परीक्षण किया जाता है। इस सबके बावजूद जबलपुर जिलें में गेहूं की औसत फसल मध्यप्रदेश में सबसे कम है इसका क्या कारण है और इसके पहले विभाग ने इस संबंध में कोई जांच या समीक्षा की है या नहीं।

    श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, यह जो वर्ष 81-82 के आंकड़े बताये गये है यह मिस प्रिन्ट है।

    अध्यक्ष महोदय : मिस प्रिन्ट की सूचना आप पहले ही दे दिया करें।

    श्री दिग्विजय सिंह : हमारे पास जो फिगर्स हैं यह कमिश्नर लैंड रिकार्ड से हमारे पास आते हैं। कई बार हमने इस बात का अनुभव किया है कि कमिश्नर, लैंड रिकार्ड से जो फिगर्स आते हैं वह सामान्य तौर पर जो उत्पादन होता है उनसे कम आते हैं। जहां तक जबलपुर का प्रश्न है जो 81-82 में उत्पादन कम हुआ है यह सचमुच में कम है। इसके बारे में जानकारी प्रस्तुत करेंगे।

    श्री चन्द्रदर्शन गौर : इसके पहले विभाग ने कोई समीक्षा की फसल का उत्पादन कम क्यों हो रहा है।

    श्री दिग्विजय सिंह : मैं स्वयं जबलपुर गया हूं और वहां पर मैने किसानों से चर्चा की है। अनुसंधान भी काफी अच्छी तरह से चल रहा है। इसमें जो फिगर्स दिये गये है यह मुझे सही प्रतीत नहीं होते है। मैं इसके बारे में पता करूंगा। वैसे जहां तक मुझे जानकारी है जबलपुर में 15-16 कि्ंवटल प्रति हेक्टर से ज्यादा औसत उत्पादन रहा हैं।

    श्री चन्द्रदर्शन गौर : मंत्रीजी जब स्वयं इन आंकड़ों से संतुष्ट नहीं है कि गलत है कि सही तो वे किस आधार पर प्रस्तुत कर रहे हैं।

    अध्यक्ष महोदय : यह उनका निजी मत है।

    श्री रमाशंकर सिंह : क्या एक मंत्री शासन के दूसरे विभाग पर आरोप लगा सकता है कि सही तो वे किस आधार पर प्रस्तुत कर रहे है।

     अध्यक्ष महोदय : व्यवस्था का प्रश्न नहीं आयेगा इस समय।

    श्री रमाशंकर सिंह : व्यवस्था का प्रश्न नहीं है, मैं तो निवेदन कर रहा हूं कि क्या...

    अध्यक्ष महोदय : नहीं, यह निवेदन भी नहीं आयेगा।

    श्री रमाशंकर सिंह : राजनीतिक तौर पर ये राजस्व मंत्री टुमन लाल और उनके विभाग को बदनाम करना चाहते हैं। हरिजन आदिवासी मंत्रियों के साथ इनका हमेशा यह सलूक रहता है और मौका मिलने पर ये उनको बदनाम करने से नहीं चूकते।

    श्री दिग्विजय सिंह : यह आरोप कतई नहीं था, राजस्व मंत्री टुमनलाल जिस सक्षमता से कार्य कर रहे है, उससे चिड़ कर ही यह लोग ऐसी बातें कर रहे हैं।

    श्री पुरूषोत्तम विपट : अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि....

    अध्यक्ष महोदय : आप अपने माईक का बटन दबायें डंडे को नहीं।

    श्री बालकवि बैरागी : आर॰ एस॰ एस॰ बालों को हमेशा डंडा ही दबाने की आदत हैं।

    श्री पुरूषोत्तम राव विपट : माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि गेहूं, चना, धान इनका जो मूल्य निर्धारित किया जाता है तो यह मूल्य निर्धारित करते समय क्या अन्य प्रदेशों से भी कृषि उपजों की लागत के आधार पर मूल्य निर्धारित करते समय कोई प्रस्ताव या राय मांगी जाती हैं ?

    श्री दिग्विजय सिंह : जी हां।

    श्री प्रेमनारायण ठाकुर : माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री महोदय ने सोयाबीन के आंकड़ों के बारे में बताया कि सोयाबीन के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं ऐसा न हो कि मंत्री महोदय की सोयाबीन राज्य की कल्पना एक दिवा स्वप्न के रूप में ही न रह जाय।

    श्री दिग्विजय सिंह : माननीय मध्यक्ष महोदय, मैं जानकारी देना चाहूंगा कि अभी तक जो कमिश्नर लैन्ड रिकार्ड में जो रिकार्ड रखा जाता है उसमें सोयाबीन को नहीं लिया जाता है। लेकिन अन्य दूसरी फसलों के आंकड़े हमारे पास हैं।

    श्री हीरालाल सोनबोइर : माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने हाथ ऊपर उठाया है और मुझे एक बहुत ही अहम प्रश्न पूछना है।

    अध्यक्ष महोदय : तो क्या जो दूसरे माननीय सदस्य प्रश्न पूछते हैं वह अहम प्रश्न नहीं होते हैं ?

    श्री बालकवि बैरागी : माननीय अध्यक्ष महोदय, इनका हाथ जब ऊपर उठता है और आप उसे नहीं देखते हैं तो वह मेरे ऊपर पड़ता है।

    श्री हीरालाल सोनबोइर : माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्रीजी से जानना चाहता हूं कि प्रति हेक्टेयर का औसत वर्ष 1981-82 का धान में सिंचन में 848 यानि तीन कि्ंवटल 40 किलो असिंचन में 777 यानि तीन कि्ंवटल 11 किलो यह उपज बताई है इस तरह से उपज की कम पैदाईश बताई गई है यह जो इस तरह से बताया गया है वह सत्य के परे दिखता है।

    श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, कमिश्नर लैन्ड रिकार्ड से यह आंकड़े उपलब्ध होते हैं और कमिश्नर लैन्ड रिकार्ड क्राप कटिंग एक्सपेरीमेन्ट में जो आंकड़े उपलब्ध होते उसी के आधार पर जानकारी दी जाती है।

    श्री कपूरचन्द धुवारा : माननीय अध्यक्ष महोदय, कितने ऊपर हाथ उठाने पर दिखता हैं।

    अध्यक्ष महोदय : आप थोड़ा ज्यादा ऊंचा हाथ उठाया करें।

    श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, धुवारा जी तो मेटरनिटी से ही हाथ ऊंचा करके आये थे (हंसी)