Digvijaya Singh
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27 दिसम्बर 1993 दिवंगत सदस्यों के निधन के उल्लेख पर संवेदना भाषण

27 दिसम्बर 1993 दिवंगत सदस्यों के निधन के उल्लेख पर संवेदना भाषण

दिनांक 27.12.1993


दिवंगत सदस्यों के निधन के उल्लेख पर संवेदना भाषण।


   मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह : आदरणीय अध्यक्ष महोदय, जितने भी लोगों का आपने उल्लेख किया है, उनके निधन पर अपने और अपने दल की ओर से सदन की ओर से मैं हार्दिक संवेदना अर्पित करता हूं। चीफ जस्टिस हिदायतउल्ला साहब जी कि अपने ही प्रांत के थे वे एक अच्छे छात्र तो थे ही, लेकिन एक अच्छे एडवोकेट के साथ-साथ एक बहुत ही कुशल और विद्वान न्यायाधीश थे। उनका एक लम्बा कार्यकाल रहा और उसमें हिदायतउल्ला साहब ने अनी विद्वता का परिचय दिया। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति का परिचय दिया, जिसने हमेशा साम्प्रदायिक सद्भाव का परिचय देते हुए जीवन भर उसका पालन भी किया। वे सर्वसम्मति से उपराष्ट्रपति चुने गए और उसके पश्चात् लम्बे समय तक उनकी लेखनी सामाजिक कार्यो में लगी रही। आज वे हमारे बीच में नहीं है। उनके निधन से समाज को जो अपूरणीय क्षति हुई हैं, उसे हम कभी पूरा नहीं कर पाएंगे।


    पंडित भगवत दयाल शर्मा एक आम आदमी के रूप में पहचाने जाते थे। हालांकि हरियाणा में उन्होंने राजनीति की, उनका कार्यक्षेत्र हरियाणा रहा। लेकिन मध्यप्रदेश के साथ उनका जो लगाव था, जब वे यहां पर हमारे राज्यपाल थे, तो उन्होंने राज्यपाल के पद को सुशोभित करते हुए भी मध्यप्रदेश के विकास के लिए, मध्यप्रदेश के आम आदमी के लिए जो उनका सोच था, जो उनके विचार थे, वे हमेशा सकारात्मक रहे हैं और वे आखिरी दम तक मजदूरों के हितों के लिए, गरीबों के हितों के लिए काम करते रहे। वे जमीन से जुड़े हुए राजनीतिज्ञ थे और वे कभी भी, किसी भी पद पर रहे हों, लेकिन उनकी सरलता, सहजता और आम आदमी के प्रति उनका जो लगाव था, जो विश्वास था, वह हमेशा आखिरी दम तक कायम रहा।
    प्रोफेसर सैयद नरूल हसन इस देश के एक जाने-माने शिक्षाविद् थे, इस देश को शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने अद्वितीय काम किए और इसके पश्चात् वे लम्बे समय तक राजदूत रहे। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के पद पर रहते हुए उन्होंने वहां की सरकार के साथ जो समन्वय स्थापित किया, एक सक्रिय राज्यपाल की जो भूमिका उन्होंने निभाई, वह आज के राजनीतिक माहौल में एक उदाहरण साबित हुई है।


    आदरणीय श्री जियाउर्रहमान अंसारी साहब के साथ मुझे आठवीं लोक सभा में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ हैं, वे एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके दिल में जो रहता था, वही उनकी जुबान पर रहता था। आजादी की लड़ाई में उन्होंने संघर्ष किया और जेल गये। उसके पश्चात् वे निरन्तर लोक सभा/विधान सभा के सदस्य बने और मंत्री के पद पर काम करते हुए उन्होंने हमेशा अनुसूचित समुदाय और बुनकरों के बारे मे बात की। उनका कार्य भुलाया नहीं जा सकता।
समय : 11.00 बजे


    श्री फ्रेंक एन्थनी, उस समुदाय के थे, जिसे कि संविधान में सरक्षण दिया गया है। वे प्रखर अधिवक्ता थे, संविधान के ज्ञाता थे और उनके साथ भी मुझे आठवी और 10 वीं लोक सभा में साथ बैठने का अवसर प्राप्त हुआ। उनका सोच, उनका विचार और एंग्लो इंडियन कम्युनिटी के लिए उनका कार्य कभी भुलाया नहीं जा सकता। आज वे हमारे बीच नहीं है। लोक सभा में जब फ्रेंक एन्थनी साहब बोलते थे, तो उन्हें बड़े ध्यान से सुना जाता था, उनको मैंने पहले भी सुना था। हालांकि वे काफी बुजुर्ग हो चुके थे, लेकिन उसके बावजूद वे समय-समय पर लोक सभा की डिबेट में भाग लिया करते थे।


    श्री हिमांशु शर्मा, श्री गौतम शर्मा जी के पुत्र थे। श्री गौतम शर्मा जी, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया, उनके जीवनकाल में ही उनके बड़े लड़के का जो देहांत हुआ, वह वाकई एक दुःखद घटना है। श्री हिमांशु शर्मा जागरूक नौजवान थे और जमीनी कार्यकर्ता थे। सन् 1985 से विधान सभा के सदस्य भी रहे, उनके निधन से अपूर्णनीय क्षति हुई है।
 
    श्री गंगाराम तिवारी ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया, लेकिन वे मजदूरों के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे, मंत्री भी रहे, इन्दौर जिला कांग्रेस कमेटी के लम्बे समय तक अध्यक्ष भी रहे और उनके बारे में यह कहा जाता था कि तिवारी जी का जीवन कांग्रेस कमेटी में ही बीता है, क्योंकि वे प्रातः 7 बजे से जब उनका कार्यक्रम प्रारंभ होता था, तो देर रात तक उनका समय समाज सेवा में ही बितता था, उनके निधन से कांग्रेस पार्टी को, समाज को और मजदूरों को अपूर्णनीय क्षति हुई हैं।


    श्री नागूलाल मालवीय एक अनुसूचित जाति के जागरूक विधायक थे। हालांकि वे हमारे दल के सदस्य नहीं थे, लेकिन बाद में हमारे साथ आए। उन्होंने सदैव दलितों और पिछड़ों के लिए उज्जैन में कार्य किया, उसके लिए उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।


    श्री सत्येंद्र सिंह ठाकुर हमारे साथ विधान सभा में सन् 77 से पहले से थे, मै स्वंय जब 77 में आया तो वे मेरे साथ रहे। आज उनके चिरंजीव हमारे दल के सदस्य है। लेकिन सत्येंद्र सिंह जी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो हमेशा हंसमुख रहते हुए अपने क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करते रहे। सदैव एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी रहे जिन्होंने केवल अपने क्षेत्र के लिए नहीं बल्कि समूचे आदिवासी समुदाय के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया उनके निधन से हमारे दल को, समाज को और आदिवासी समुदाय को अपूर्णनीय क्षति हुई है।


    आदरणीय अध्यक्ष महोदय, डाक्टर भंवर सिंह पोर्ते का निधन एक ऐसी घटना थी, जिसे कि मैंने अपने आपकी एक निजी क्षति माना है। डां पोर्ते युवा थे, आदिवासियों के लिए उन्होंने जो कार्य किया चाहे विधायक के रूप में, चाहे मंत्री के रूप में, चाहे समाज सेवक के रूप में उनकी आदिवासियों के बीच में काम करने की एक अपूर्व क्षमता थी और वे एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने जीवन में हमेशा संघर्ष किया, अपने आदर्शों के लिए, अपने विचारों के लिए आदिवासियों के शोषण के लिए, सामाजिक अन्याय के लिए सदैव संघर्ष करते रहे और हमें इस बात का दुख है कि जब वह व्यक्ति अपने कार्य से अपनी प्रतिभा से उसकी राजनीति पर उसके व्यक्तित्व पर निखार आ रहा था, उस समय वे हमारे बीच में नहीं रहे। इस प्रदेश ने एक बहुत शक्तिशाली और प्रतिभाशाली आदिवासी नेता खोया है और में इसे अपनी निजी क्षति भी मानता हूं क्योंकि मेरे और उनके बड़े निकट के संबंध थे, पारिवारिक संबंध थे।


    आदरणीय अध्यक्ष महोदय, जे. आर. डी. टाटा वह व्यक्ति थे, जिन्होंने बचपन से ही जो काम हाथ में लिया वह कुशलता से पूरा किया और जिसमें हाथ डाला उस में वे सफल हुए। हालांकि जमशेद जी टाटा ने जो संस्थान प्रारंभ किये, उनमें अपने संचालन से वे और निखार लाये लेकिन अपने आपमें यदि जे. आर. डी. टाटा की जीवनी देखी जाये, तो उन्होंने इस देश के औद्योगिक जगत में अपना विशेष स्थान बनाया है और न केवल औद्योगिक क्षेत्र में लेकिन सामाजिक क्षेत्र में लेकिन सामाजिक क्षेत्र में भी उन्होंने अपना विशेष स्थान बनाया है। आजादी के बाद इंडियन एयर लाइंस, एयर इंडिया का जब गठन हुआ, तो यह जवाबदारी उन्हीं पर सौंपी गई थी, वे एक अच्छे पायलट थे और आखिर तक वे हवाई जहाज उड़ाते रहे और उसमें उनका जो योगदान था, उसको स्वीकार करते हुए उन्हें भारत रत्न की जो पदवीं थी, वे एक तरीके से उसके लायक भी थे और एक अच्छी शुरूवात सरकार नें की थीं।
    अध्यक्ष महोदय, न्यायमूर्ति श्री सुशील कुमार झा, यह भी एक संयोग है कि जिस दिन वे रिटायर हुए उसके दो दिन बाद ही उनका निधन हो गया हालांकि मेरा उनके कोई विशेष परिचय नहीं था, लेकिन उनकी अपनी काम करने की शैली थी, काम करने का एक तरीका या और विधि के क्षेत्र में उनके जाने से एक शून्यता आई है।


    आदरणीय अध्यक्ष महोदय, श्री फखरूद्दीन शाह साहब जिन्हें प्यार से फखरू मियां कहा करते थे, उन्होंने भोपाल को शिक्षा जगत में, सैफिया कालेज को अपनी स्थिति में पहुंचाने के लिए जो योगदान दिया हैं, उसे भोपाल का कोई भी आदमी भुला नहीं सकता क्योंकि भोपाल में कोई भी सामाजिक कार्य, शैक्षणिक कार्य हो फखरू मियां की आवश्यकता महसूस की जाती थी और उन्होंने सदैव बड़ी तल्लीनता से, बड़ी सजगता से बड़े अच्छे ढंग से भोपाल के शिक्षा जगत के प्रसार में, भोपाल के विकास में, सामाजिक क्षेत्र में और शैक्षणिक क्षेत्र में जो योगदान रहा है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।


    आदरणीय अध्यक्ष महोदय, महाराष्ट्र और कर्नाटन में विशेषकर लातूर क्षेत्र में जो भूकंप से हजारों लोगों की जाने गई और करोड़ों अरबों रूपयों का नुकसान हुआ है, उसकी पूर्ति कभी नहीं की जा सकती। यह विडम्बना है कि जब भूकंप आया तो लोग आसमान के नीचे सो रहे थे, उसका कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन जो अपने घरों में सो रहे थे, वे उसमें दबकर मर गये। यह विधि का विधान हैं, इसको टाला नहीं जा सकता। लेकिन शासन ने और विशेषकर हमारे मिलेट्री के जवानों ने और महाराष्ट्र की सरकार ने, कर्नाटक की सरकार ने जिस सक्रियता  के साथ प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए काम किया है, उसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। हमारे प्रदेश में भी भूकंप के कुछ झटके की सूचनाएं आई है। हमने इस बारे में पर्याप्त कार्यवाही की है लेकिन महाराष्ट्र और कर्नाटक के भूकंप में जो क्षति हुई है, यह एक राष्ट्रीय क्षति थी, एक राष्ट्रीय विपदा थी। उसमें जिन लोगों की जाने गई हैं, उनके प्रति हम ईश्वर से प्रार्थना करते है कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।


    अध्यक्ष महोदय, जो बाकी भूतपूर्व सदस्यगण, जिनके बारे में आपने उल्लेख किया हैं, उनके परिवारों के प्रति भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि इन सभी महानुभावों ने अपने कार्यकाल में, अपने जीवन में जो आदर्श स्थापित किया हैं, वह आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायी रहेगा। मैं एक बार फिर से अपने दल की ओर से और सदन की और से हार्दिक संवेदनाएं प्रकट करता हूं।