Digvijaya Singh
MENU

27 अक्टूबर 1979 अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा

27 अक्टूबर 1979 अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा

दिनांक 27.10.1979
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा।

    

श्री दिग्विजय सिंह (राघौगढ़) : अध्यक्ष महोदय, मेरे दल के द्वार जो यह अविश्वास प्रस्ताव सदन में प्रस्तुत किया गया है उसका मैं पुरजोर समर्थन करता हूं। अध्यक्ष महोदय, सत्ता पक्ष की ओर के मैंने सभी माननीय सदस्यों के भाषण बड़े ध्यान से सुने। जब माननीय पटवा जी बोलने के लिये खड़े हुए तो मैं समझता था कि वे जनसंघ के अनुशासित सिपाही के नाते वे अपने नेता श्री सखलेचा जी का पुरजोर समर्थन करेंगे। लेकिन अध्यक्ष महोदय, वह अनुशासित सिपाही अब चतुर सिपाही हो गया है।
    उन्होंने जगदीश गुप्ता के लिए कहा कि वे भ्रष्टाचार नहीं करते हैं। श्री शीतला सहाय जी के लिए कहा कि वे भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं हैं, रामहित गुप्त के लिए कहा कि वे भ्रष्टाचार नहीं करेंगे। लेकिन जब सखलेचा जी का मौका आया तो लोकदल के सदस्यों से कहा कि आप क्यों नहीं जल्दी से जल्दी कार्यवाही करवाते हैं आपको रोकता कौन है। 
    

श्री सुन्दरलाल पटवा : मैंने इसलिए यह कहा था कि इसमें सारे के सारे आरोप सखलेचा जी के ऊपर लगाये गये हैं। और ये आरोप एक नहीं अनेक बार यही आरोप लगाये गये हैं इसलिए मैंने चुनौती दी है आप आगे कार्यवाही करें और यदि आप कार्यवाही नहीं करते हैं तो इसका मतलब है कि उसमें कोई तथ्य नहीं हैं।
    

श्री दिग्विजय सिंह  : अध्यक्ष महोदय, मेरा लक्ष्य पटवा जी को छेड़ने का कतई नहीं है।
    

श्री सुन्दरलाल पटवा : उम्र तो मेरी है कि मैं आपको छेडू आप क्या मुझे छेड़ेगे।
    

श्री दिग्विजय सिंह  : इसके बाद, अध्यक्ष महोदय, श्री प्रेमलाल जी मिश्र का भाषण मैंने सुना। उन्होंने आरोप लगाया प्रतिपक्ष को कि सखलेचा जी से सांठ गांठ है।
    

श्री प्रेमलाल मिश्र  : मैंने ऐसा नहीं कहा।
    

श्री दिग्विजय सिंह  : जरूर सुन लें। यदि अविश्वास रखते हैं तो नाराज होते हैं। नहीं रखते हैं तो भी नाराज होते हैं। माननीय सदस्य की सांठगांठ किस किस से है इसका मैं बखान नहीं करूंगा। मैं माननीय सदस्य को स्पष्ट कर दूं कि यह अविश्वास प्रस्ताव आपके खिलाफ नहीं आया हैं, यह तो सखलेचा जी के मन्त्रिपरिषद के खिलाफ आया है। अगर आपके खिलाफ होता तो बताता। कि कितने टरमिनिटेड फुड इंसपेक्टर की आपने पुनर्नियुक्ति करवाई है।
    

श्री प्रेमलाल मिश्र  : अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से केवल इतना कहना चाहूंगा कि शायद माननीय सदस्य को यह पता नहीं हैं कि अभी फुड इंसपेक्टर का इन्टरव्यू ही नहीं हुआ है।
(व्यवधान)
    

श्री दिग्विजय सिंह  : मैं आप पर आरोप नहीं लगा रहा हूं।
    

श्री जुगलकिशोर गुप्ता  : अध्यक्ष महोदय....
    

अध्यक्ष महोदय  : मिस्ट जुगलकिशोर जी गुप्ता, आप अपनी सीट पर से बोलियें और वह भी अनुमति लेकर।
    

श्री दिग्विजय सिंह  : हमारे संभाग के वरिष्ठ सदस्य माननीय जौहरी जी के भाषण को भी मैंने सुना। उन्होंने चार्ज शीट में से कोई मुद्दा नहीं उठाया उनका भाषण केवल राजनैतिक भाषण था।
    

श्री नरेश जौहरी : कोई मुद्दा ही नहीं है।
    

श्री दिग्विजय सिंह  : उनका भाषण उसी प्रकार का था जिस तरह हिटलर के गोये वल्स का होता था। उन्होंने बड़े जोरदार शब्दों में भाषण देकर विरोधी पक्ष के मुंह को बंद करने की कोशिश की लेकिन वे उसमें सफल नहीं हुए और न होंगे।
    (व्यवधान)
    

श्री सूरजमल जैन : आपको हिटलर के गोयेवल्स के भाषण सुनने का मौका कब मिला?
    

श्री दिग्विजय सिंह : हमसे यह कहा गया कि हम आपकी तबियत दुरूस्त कर देंगे तो मैं जानना चाहता हूं कि क्या वे हमारी पिटाई करके दुरूस्त करेंगे या किस तरह से क्या करेंगे यह कुछ समझ में नहीं आता। मैं माननीय जौहरीजी का बड़ा आदर करता हूं। जौहरीजी जैसे व्यक्ति के लिये इस तरह का भाषण देना उनकी गरिमा के अनुकूल नहीं है। मैं हवाई पतंग नहीं उड़ाया करता। मैं तो सीधा आरोप लगाता हूं। अब मैं वित्तमंत्री जी के खिलाफ जो आरोप लगाया गया है उसके बारे में कुछ कहना चाहता हूं।
    

अध्यक्ष महोदय, शासन डिस्टलरी से शराब खरीदता है आज से दो वर्ष पूर्व एक ओवर प्रूफ लीटर शराब का मूल्य एक रूपया 52 पैसा था। सन् 1978 में उसी शराब का मूल्य 1 लीटर का शासन जो डिस्टीलरी से खरीदता है उसको बढ़ाकर 2 रूपया 50 पैसा प्रति लीटर प्रूफ कर दिया। जब कि वास्तविकता यह है कि-
    

श्री नरेश जौहरी : क्या लोगों को आसानी से सुलभ नहीं हो रही हैं ?
    

श्री दिग्विजय सिंह : यह तो मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझे तो आवश्यकता नहीं है। याने कहने का मतलब एक रूपया मूल्य बढ़ा दिया प्रति प्रूडलीटर। महुआ जो कि रा-मटीरियल है जिससे शराब बनती है वह दो वर्ष पूर्व.......
    

डॉ. रमेश अग्रवाल : यह विषय आपका नहीं हैं, यह तो श्री सुंदरलाल जी जायसवाल का है।
    

अध्यक्ष महोदय  : अब श्री ओमप्रकाश रावल बोलेंगे।
    

श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, केवल एक मिनट और चाहता हूं।
    

अध्यक्ष महोदय  : आपका एक मिनट समाप्त हो गया।
    

श्री दिग्विजय सिंह : आपने सबको समय दिया है। मुझे भी एक मिनट दे दीजिये।
    

अध्यक्ष महोदय  : आप इस तरह 3 बार ले चुके हैं। 
    

श्री दिग्विजय सिंह : यह जोरा मेटिरियल होता है जिससे शराब बनती है महुआ उसका पहले 200 रूपया क्विन्टल था आज उसका भाव 85 रूपया क्विन्टल हो गया है। लेकिन शराब का भाव 1 रूपया प्रति लीटर बढ़ा दिया गया है वह कम नहीं हुआ है जब कि गवर्नमेन्ट प्रति वर्ष दो करोड़ लीटर शराब खरीदती है। इस प्रकार से दो करोड़ रूपये लाभ उन लोगों को दिया गया। और दो करोड़ रूपये का सरकार को घाटा हुआ है।
    

श्री रामहित गुप्ता : अध्यक्ष महोदय, मैं केवल एक मिनट में श्री दिग्विजय सिंह जी का उत्तर दिये देता हूं। उन्होंने जो कहा है जिससे शराब बनाई जाती है रा-मेटीरियल महुआ उसके दाम भी पहले के मुकाबले आज अधिक हैं और कोयले के भाव भी आज काफी बड़ गये हैं। और दूसरा जो मेटिरियल लगता हैं उसके भाव भी बड़े हैं। इन सब के बावजूद भी हमने सन् 1976-74 में 65 पैसे था इनकी कांग्रेस की सरकार ने निशिचत किया या और सन् 1976-78 में 1 रूपया या हमने केवल 35 पैसे ही ज्यादा दिये हैं इस प्रकार से हमने दो करोड़ रूपये लास नहीं किया है बल्कि 1 करोड़ रूपये का फायदा किया है।
    

श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, 2 माह पूर्व यह आदेश सरकार ने दे दिया है कि अब महुआ के बजाय राव से शराब बनाई जा सकती है। अध्यक्ष महोदय, गन्ने की राव से शराब बनाई जाना चाहिये वह रामेटिरियल सस्ता पडे़गा।
    

श्री ओमप्रकाश रावल (इन्दोर-1) : अध्यक्ष महोदय, ट्रेजरी बेचेंज की ओर से श्री प्रेमलाल जी मिश्रा ने बड़े जोश-खरोश से यह कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव में केवल भ्रष्टाचार की बात कही गई है इसमें नीतियों की कोई चर्चा नहीं की गई है। अध्यक्ष महोदय, मैं उनसे कहना चाहूंगा कि जहां तक अविश्वास प्रस्ताव पर नीति का सवाल है।
    हम लोग हमेशा ही नीति के लिए लड़ते रहे है पहले मैं उनसे कहना चाहूंगा कि नीतियों की बात इन्दिरा कांग्रेस वाले नहीं करते थे तो वे आज वहां पर बैठे हैं। लेकिन आज तो आप ट्रेजरी बैन्च पर बैठे हैं जनता उनसे पूछ रही है कि आप क्या कर रहे हैं। जहां तक नीतियों की बात है जब मैं कैवीनेट में था मैंने बार बार नीतियों की चर्चा की थी विधायक दल की कार्यकारिणी ने तथा विधायक दल की बैठक में भी हमेशा नींतियों का सवाल उठाया है, लेकिन ट्रेजरी बैंचेज के लोग अपने कानों में तेल डाले बैठे हुये थे बहरे बने हुये थे। मैं एक ही बात लेता हूं। नौजवानों को रोजगार देने की बात है अभी एक मऩ्ी जी ने बड़े हंसते हुये कहा था कि हम 10 साल में सब बेरोजगारों को रोजगार दे देंगे।
    हमने बार बार उनसे पूछा कि आपने इसके लिये बजट में कोई प्रावधान किया है। और आपने 2 सालों में कितने लोगों को रोजगार दिया है। यह कुछ नहीं बताया गया है। यह जो कहा कि हम लोगों को अनाज दे रहे हैं। अनाज के बदले काम की योजना चलाई है।
    विधानसभा की सबसे बड़ी कमेटी है एस्टीमट कमेटी हम जहां जहां भी गये हमने मजदूरों से पूछा है। उनकी जो हालत है इस प्रदेश में कलम के मजदूर को मिलता है 15 रूपये से लेकर 500 रूपया लेकिन कुदाली चलाने वाले मजदूर को 4 रूपया मिलता है। 
    उन चार रूपयों में भी मजदूर बँधुआ हो गये हैं। जब कि कांग्रेस के जमाने में तो खेतिहर मजदूरों को ही बन्धुआ रखा जाता था। लेकिन अब तो सड़क और सिंचाई में काम करने वालों को भी बन्धुआ रखा जाने लगा है।
    अध्यक्ष महोदय, ठेकेदार दो सौ और तीन सौ रूपये एडवान्स देकर उन मजदूरों को ले जाता है उनकी जो मजदूरी 4 रूपया और 6 रूपया होती है वह नहीं दी जाती, ठेकेदार उनको 1।। रूपया और दो रू. मजदूरी देता है। अध्यक्ष महोदय, मैं कहूंगा जो ये मन्त्री बैठे हुए हैं उनका राज्य नहीं है मन्त्री तो जो सेल्यूट कान्स्टेबल देता है उससे खुश हो जाते हैं, उनका सेल्यूट लेनेभर का काम लेकिन प्रशासन उनका नहीं है।
    अध्यक्ष महोदय, मैंने वित्त मन्त्री जी सेविधान सभा के अन्दर बजट भाषण के समय कहा था, जो टाट पट्टी जो सन् की बतनी है वे जो लोग बनाते हैं उनको बनाने का काम दे दीजिये। जहां सूत की टाट पट्टी में एक को काम मिलता है तो सन् में पांच को रोजगार मिलता है, अतएव नये बेरोजगार लोगों को काम मिल जायगा उनसे टाट पट्टी ली जाय, उनसे सन का टाट पट्टी खरीद ली जाय।
    मैंने इस बात को वित्त मन्त्री जी से कहा था उन्होंने कहा कि मैंने शिक्षा मन्त्री जा से कह दिया है, शिक्षा मन्त्री जी ने राज्य मन्त्री जी कह दिया। लेकिन मुझे अफसोस है कि वह आज तक क्रियान्वित नहीं किया गया। अध्यक्ष महोदय, यह मुझे नहीं मालूम कि वित्त मन्त्री जी इतने धोखेबाज होंगे। अध्यक्ष महोदय, प्रशासन बिल्कुल ठप्प हो गया है कोई काम नहीं हो रहा है। जनता के हित की बातें करते हैं, लेकिन कुछ भी करने में असमर्थ हैं।