Digvijaya Singh
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मध्यप्रदेश ग्रामोद्योग विधेयक 1978 पर चर्चा

मध्यप्रदेश ग्रामोद्योग विधेयक 1978 पर चर्चा

दिनांक 26.04.1978

श्री दिग्विजय सिंह (राधोगढ़) :

सभापति महोदय, मध्यप्रदेश ग्रामोद्योग विधेयक 1978 को मैंने देखा और जैसा कि मुख्यमन्त्री महोदय ने अभी बताया कि पिछले 1959 से आज तक इसके अन्दर ढिलाई की गई, वह अपने उद्देश्य पूरे नहीं कर पा रहा था, उसके अन्दर एक्सपर्ट नहीं थे। इन दो कारणों से यह विधेयक लाया गया। तो मेरा निवेदन है कि यदि वह ठीक तरह से काम नहीं कर पा रहा था और उसके अन्दर एक्सपर्ट नहीं थे, तो इस शासन को कौन रोक रहा था कि वह इस बोर्ड के अन्दर इस तरह की नियुक्ति नहीं करता। इसके साथ-साथ ही मुख्य मन्त्री जी ने कहा कि पिछले 2-3 वर्षों से इस मूल ढांचे के अन्दर प्रगति करके दिखाई है, जब उसमें प्रगति हो रही थी, तो फिर से विधेयक लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी यह मेरी समझ में नहीं आया। सभापति महोदय, साथ ही मैंने जब इन दोनों को सामने रखा, तो उसमें कोई खास परिवर्तन नहीं लगा, केवल उन्होंने मध्यप्रदेश खादी ग्रामोद्योग का नाम हटा कर मध्यप्रदेश ग्रामोद्योग कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि इस जनता पार्टी का शासन खादी का महत्व कम करना चाहता है।
  

 अध्यक्ष महोदय, अधिकतर जनता पार्टी के मंत्रीगण, विधायक खादी नहीं पहनते हैं, क्या यही कारण है कि खादी का नाम हटाया जा रहा है, यदि यह गांधीवादी कहलाते हैं, अगर राजघाट पर जाकर कसम खा सकते हैं तो मेरा निवेदन है कि खादी का महत्व इसमें कम न करें। यदि खादी का महत्व कम नहीं किया जाता तो इस विधेयक का समर्थन करने में हमें कोई आपत्ति नहीं है। सभापति महोदय, जहां तक मध्यप्रदेश खादी बोर्ड के ठीक से संचालन करने की बात है, यह केवल विधेयक लाने से ठीक नहीं किया जा सकता, इसके लिये हमें ग्रामोद्योग की गहराई में जाना पड़ेगा। इसकी एबिलिटी में, इसके संचालन में कैसे मूल परिवर्तन किया जा सकता है, इसके लिये उसकी गहराई में जाकर देखना चाहिये। एबिलिटी कैसे बढ़ाई जाये, संचालन कैसे सुधारा जाये इस भाषण को माननीय सदस्य ने नहीं सुधारा, इसका गहरा अध्ययन करने के बाद ही हम सफल हो पाएंगे। सभापति महोदय, मैं इसके बारे में जो विधेयक है इतना और कहना चाहता हूं कि इसके गठन के बारे में मै इस विधेयक से पूर्णतः सहमत हूं। अधिकतर ऐसे लोग रखने चाहिये, जो प्रशिक्षित हों, विशेषज्ञ हों। पहले ऐसे लोंगों की जमात इकट्ठी कर दी गई थी, जिसका ग्रामोद्योग से कोई वास्ता नहीं था। इसके अध्यक्ष पद के लिये भी विशेष ध्यान रखना होगा, कोई विशेषज्ञ ही अध्यक्ष पद के लिये उपयुक्त होगा न कि कोई राजनीतिक व्यक्ति मैं माननीय मुख्य मन्त्री जी से निवेदन करना चाहूंगा कि अध्यक्ष पद की नियुक्ति करते समय इस बात का ध्यान रखा जाए।
    सभापति महोदय, मेरा अगला सुझाव यह है कि इस बोर्ड के गठन के बाद के माध्यम सर्वेक्षण करवाएं कि जो लोग भूमिहीन हैं, जिनके पास और कोई साधन जीविका का नहीं है, जो पैतृक धंधे करते चले आ रहे है, जैसे बढ़ई, लोहार, कोरी इस तरह के जो पेतृक धंधे करते आ रहे हैं, इनमें से ऐसे लड़कों को छांटना चाहिए, जो थोड़ा पढ़े-लिखे भी हों, ऐसे लोगों को प्रशिक्षणार्थ भेजना चाहिए और प्रशिक्षण का पूरा खर्च शासन को उठाना चाहिए। इसके बाद इन्हें ग्रामोद्योग के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। सभापति महोदय, इसके लिए ऋण की व्यवस्था भी की जानी चाहिए। सभापति महोदय, मेरा निवेदन यह है कि पिछले बजट में जनता पार्टी की सरकार ने बड़े-बड़े उद्योगपतियों को मिनी-स्टील प्लांटस लगाने के लिए रियायतें दी हैं, यदि जनता पार्टी का शासन चाहते है कि वह ग्रामोन्मुखी बनें, ग्रामोद्योग खुलें, तो मैं निवेदन करूंगा कि इसके लिए फाइनेंस की व्यवस्था की जाएं। इसके लिए कम से कम 25 प्रतिशत ऋण दिया जाए और यह ऋण ब्याज मुक्त होना चाहिए ताकि अदायगी आसानी से हो सके। सभापति महोदय, ऐसा देखा गया है कि हमारे यहां के कोरियों को हथकरघा लगाने के लिये ऋण स्टेट बैंक आफ इंदौर से दिया गया था। ऋण मिलने के बाद अगले साल से वसूली चालू कर दी, जिससे न वे काम कर पाये और न ऋण ही पटा पायें। जब आप बड़े उद्योगपतियों को रियायत दे रहे हैं 2-2, 4-4 वर्ष तक, तब ग्रामोद्योग में लगे व्यक्तियों को भी रियायत देनी चाहिए।
    सभापति महोदय, एक बात मैं और कहना चाहूंगा कि पूर्व में जितने भी ग्रामोद्योग असफल हुये हैं, वे कच्चे माल के अभाव में फेल हुए हैं। सभापति महोदय, हाथकरघा उद्योग के लिए सूत, चमड़ा उद्योग के लिए चमड़ा, बढ़ई के लिए लकड़ी आदि कच्चा माल उपलब्ध कराये जाने की व्यवस्था नहीं की गई।
    बुरहानपुर का मिल चालू हुआ था हाथ करघा ऋण उपलब्ध कराने में दिक्कत पड़ती थी। कच्चा माल उपलब्ध कराने की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। बढ़ई को लकड़ी नहीं मिल सकती मैंने वन विभागों की चर्चा के समय वन मन्त्री जी से निवेदन किया था बढ़ई के लिए निस्तारी डिपो से कमर्शियल रेट पर लकड़ी दी जा सकती हैं जो गरीब बढ़ई हैं उनका रजिस्ट्रेशन करा लें और सस्ती दरों पर कच्चा माल उपलब्ध करायें। यह ख्याल भी रखा जाना चाहिए कि कुम्हारों को मिट्टी की जरूरत होती है तो खदानों की नीलामी होती है तो कई विचौलिये खदान का ठेका, बोली लगाते हैं जिनका निर्वाह मिट्टी से होता हैं उन्हें ठेका नहीं मिल पाता बीच में लोग खरीद लेते हैं व अधिक रायल्टी लेते हैं। मुख्य मन्त्री नियमों में परिवर्तन करें ताकि जिन लोगों का धन्धा चलता है उन्हें ही नीलामी में बोली लगाने की गुंजाइश हो। कुम्हारों को ही मिट्टी की नीलामी लेने का अधिकार होना चाहिए। बसोड़ों को वांस उपलब्ध कराये जाने चाहिए। अगर आप उन लोगों को कच्चा माल देने लगेंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी। मैं बेचने के बावत हाथ करघा का एक उदाहरण देता हूं। जो ऋण मिल जाता है जो माल बना लेते है और हाट-हाट बेचते घूमते फिरते हैं और इस बीच उनका हाथ करघा बन्द रहता है। जो माल बेंचकर लाते है चुकाने की वजाय उधार कर लेते हैं। बोर्ड की तरफ से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि बना हुआ माल बोर्ड अपने माध्यम से खरीदे यह नीति बननी चाहिये कि पूरे प्रदेश में बोर्ड अपने माध्यम से माल खरीदे व बिक्री करे। जैसे चर्म उद्योग के अन्दर चमड़ा पकाया जाता है तो उसे धोकर की छाल की जरूरत पड़ती है जब वह वन विभाग में जाता है तो वहां उसको परेशान किया जाता है। अध्यक्ष महोदय, जहां भी ग्राम उद्योग खोलना चाहें कच्चा माल सप्लाई किया जाना चाहिये तभी ग्रामोद्योग सफल हो पायेंगे। विधेंयक बनाने से काम नहीं चलेगा। इसका सेपरेट डायरेक्टोरेट बनाया जावे ताकि मदद मिल सके। 22 जिलों में ग्रामोद्योग केन्द्र खुले हैं गुना जिला अत्यन्त पिछड़ा हुआ है, बेकवर्ड है अतः वहां इस प्रकार की इन्डस्ट्रीज खोली जावें। आखिरी बात और निवेदन करना चाहूंगा जनता पार्टी की घोषित नीति है नशाबन्दी लाई जावे। नशाबन्दी लाने से मेरे कई साथी बेरोजगार हो सकते है। मेरा सुझाव है..........


    सभापति महोदय : एक मिनिट की सीमा है।


    श्री दिग्विजयसिंह : महुआ का भी उद्योग खोला जावे ताकि काम चल सके।