Digvijaya Singh
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डाइ एथिलीन ग्लाइकोल DEG युक्त खांसी की दवाओं से हुई बाल मृत्यु औषधि नियामक तंत्र की विफलता तथा दंडनीय प्रावधानों के ह्रास से उत्पन्न जन स्वास्थ्य संकट के विषय में तत्काल उच्चस्तरीय जांच एवं कार्यवाही करने बाबत

डाइ एथिलीन ग्लाइकोल DEG युक्त खांसी की दवाओं से हुई बाल मृत्यु औषधि नियामक तंत्र की विफलता तथा दंडनीय प्रावधानों के ह्रास से उत्पन्न जन स्वास्थ्य संकट के विषय में तत्काल उच्चस्तरीय जांच एवं कार्यवाही करने बाबत

प्रति,

श्री नरेंद्र मोदी जी,
माननीय प्रधानमंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली।

विषयः डाइ-एथिलीन ग्लाइकोल (DEG) युक्त खांसी की दवाओं से हुई बाल-मृत्यु, औषधि नियामक तंत्र की विफलता तथा दंडनीय प्रावधानों के ह्रास से उत्पन्न जन-स्वास्थ्य संकट के विषय में तत्काल उच्चस्तरीय जांच एवं कार्यवाही करने बाबत।

महोदय,

मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिले छिंदवाड़ा में जहरीले कफ सीरप से 26 बच्चों की दर्दनाक मौत होने के मामले की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। इस हृदयविदारक हादसे ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कदम-कदम पर बरती गई लापरवाहियों की कलई खोल दी है। दो दर्जन से अधिक माताओं की गोद को सूनी कर देने वाले इस नृशंस कांड की निष्पक्ष जांच कराई जाकर जिम्मेदार व्यक्तियों पर कार्यवाही की जानी चाहिए।
भाजपा पर आरोप है कि उसने इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए 945 करोड़ रुपये का चंदा लेकर नकली और घटिया दवा बनाने वाली कंपनियों को दी जाने वाली सजा की जगह जुर्माने का प्रावधान कर करोड़ों देशवासियों के जीवन से खिलवाड़ करने की खुली छूट दे दी है। मैंने इसी पत्र में कमजोर किए गए कानून की धाराओं का उल्लेख किया है।
हाल के दिनों में देश के विभिन्न राज्यों से प्राप्त आधिकारिक अभिलेखों — जैसे केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की दिनांक 4 अक्टूबर 2025 की रिकॉल अधिसूचना, तमिलनाडु औषध नियंत्रण निदेशालय की निरीक्षण रिपोर्ट तथा परासिया (मध्य प्रदेश) थाने में दर्ज प्राथमिकी से स्पष्ट होता है कि डाइ-एथिलीन ग्लाइकोल (DEG) से दूषित खांसी सिरपों के सेवन से अनेक निर्दोष बच्चों की असमय मृत्यु हो चुकी है। यह एक राष्ट्रव्यापी अपराध प्रतीत होता है।

मध्यप्रदेश में घटित हाल की यह घटना मात्र एक औषधि के जहरीली होने का मामला नहीं है, अपितु हमारे औषधि विनियामक ढांचे, स्वास्थ्य प्रशासन तथा नीति-निर्माण प्रक्रिया की गहन विफलता का प्रतीक है। यह स्थिति न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि संवैधानिक उत्तरदायित्व (अनुच्छेद 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य का मौलिक अधिकार) तथा समाज और सरकार के नैतिक मूल्यों की भी कठोर परीक्षा है।
नियामक तंत्र की संरचनात्मक विफलता
•    दूषित और विषाक्त सीरपों में डाइ-एथिलीन ग्लाइकोल (DEG) की सांद्रता 48.6% तक पहुँच गई, जो भारतीय औषधि संहिता (IPC) की अनुमेय सीमा (≤0.1%) से पूरे 486 गुना अधिक है। यह एक ऐसी विषाक्तता है जो जानबूझकर की गई हत्या से कम नहीं है।
•    फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (PvPI) मध्यप्रदेश में पूरी तरह से निष्क्रिय और असरहीन है।
•    औद्योगिक-ग्रेड ग्लिसरीन या प्रोपिलीन ग्लाइकोल का अनधिकृत एवं घातक उपयोग किया गया, जो मानव चिकित्सा के लिए पूर्णतः अयोग्य है।
•    प्रदूषित सीरप निर्माण करने वाली इकाई का अंतिम निरीक्षण वर्ष 2016 में हुआ था, अर्थात लगभग एक दशक की संपूर्ण उपेक्षा की गई।
•    मध्यप्रदेश औषध नियंत्रण प्रशासन ने नमूना परीक्षण का प्रावधान तक लागू नहीं किया, जिससे विष का प्रसार अनियंत्रित रहा।
ये तथ्य असंदिग्ध रूप से प्रमाणित करते हैं कि राज्य एवं केंद्रीय औषधि नियामक संस्थाएँ जैसे — Central Drugs Standard Control Organization (CDSCO) तथा राज्य की संस्था State Drugs Control Department (SDCD) अपने विधिक एवं संवैधानिक दायित्वों में पूर्णतः विफल रही हैं। ऐसी घोर लापरवाही ने न केवल निर्दोष जीवन नष्ट किए हैं, अपितु संपूर्ण जन-स्वास्थ्य तंत्र पर विश्वास का संकट उत्पन्न कर दिया है।
वैश्विक गुणवत्ता मानकों की उपेक्षा
•    भारत अभी तक फार्मास्यूटिकल इंस्पेक्शन कोऑपरेशन स्कीम (PIC/S) का पूर्ण सदस्य नहीं बन सका है, जबकि यह अंतरराष्ट्रीय गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) निरीक्षण मानकों के समन्वय के लिए अपरिहार्य मंच है। इसी प्रकार, इंटरनेशनल काउंसिल फॉर हार्मोनाइजेशन (ICH) के गुणवत्ता मानदंडों का अनुपालन भी नाममात्र का है, जो औपचारिकताओं तक सीमित रह गया है।
•    जब तक हम इन वैश्विक मानकों को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 एवं संबंधित नियमों में दृढ़तापूर्वक एकीकृत एवं लागू नहीं करते, तब तक भारत की औषधि-निर्माण प्रणाली की गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता दोनों संदिग्ध बनी रहेंगी। यह विफलता न केवल आंतरिक बाजार को प्रभावित कर रही है, अपितु हमारी वैश्विक प्रतिष्ठा को भी कलंकित कर रही है।
दोहरी गुणवत्ता नीति का पूर्ण अंत आवश्यक
•    यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण एवं अन्यायपूर्ण है कि निर्यात-उन्मुख औषधियों के लिए कठोर गुणवत्ता मानक अपनाए जाते हैं, जबकि घरेलू बाजार के लिए ढीले एवं अपर्याप्त।
•    भारत के नागरिक वही सुरक्षित एवं उच्च-गुणवत्ता वाली औषधियाँ पाने के हकदार हैं जो हम विश्व को निर्यात करते हैं।
•    “दोहरी गुणवत्ता” की यह नीति न केवल संवैधानिक समानता के सिद्धांत (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन है, अपितु जन-स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीय प्रतिष्ठा दोनों के लिए घातक एवं अपमानजनक भी। ऐसी नीति का तत्काल अंत हो, ताकि “मेड इन इंडिया” और ‘मेक इन इंडिया’ का आदर्श वास्तविकता बने।
आवश्यक सुधारात्मक कदम
(1) स्वतंत्र उच्च-स्तरीय जांच समिति का गठनः भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR), CDSCO, AIIMS, फॉरेंसिक एवं औषधि-गुणवत्ता विशेषज्ञों को सम्मिलित एक स्वायत्त एवं समयबद्ध जांच समिति का गठन किया जाए। यह समिति दूषित सिरपों के उत्पादन, निरीक्षण, वितरण श्रृंखला, लाइसेंस नवीनीकरण एवं एक्सिपिएंट स्रोतों की पूर्ण जिम्मेदारी निर्धारित करे तथा अपनी रिपोर्ट 90 दिनों के भीतर संसद में प्रस्तुत करे।
(2) राज्य-स्वामित्व एवं स्वतंत्र औषधि गुणवत्ता प्रयोगशालाएँः प्रत्येक राज्य एवं प्रमुख औषधि क्लस्टर (गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश आदि) में ISO/IEC 17025 प्रमाणित, पूर्णतः स्वतंत्र प्रयोगशालाएँ स्थापित की जाएँ। इनका संचालन सरकारी, व्यावसायिक या राजनीतिक दबावों से मुक्त रखा जाए, तथा साप्ताहिक नमूना-परीक्षण सुनिश्चित किया जाए।
(3) मध्यप्रदेश राज्य स्वास्थ्य सोसायटी एवं औषधि क्रय तंत्र की समीक्षा: राज्य स्तर पर औषधि-क्रय प्रक्रिया में गुणवत्ता-आधारित पारदर्शिता एवं ई-प्रोक्योरमेंट सुनिश्चित की संदिग्ध प्रणाली को तुरंत प्रभाव से बदला जाए। स्टेट हेल्थ सोसायटी के सामान्य एवं कार्यकारी निकायों की तत्काल समीक्षा की जाए, तथा आवश्यकता पड़ने पर पुनर्गठन कर पारदर्शी प्रणाली लागू की जाए।
(4) CDSCO एवं राज्य SDCD की जवाबदेही सुनिश्चित की जाएः निरीक्षण एवं लाइसेंसिंग व्यवस्था को स्वतंत्र प्रशासनिक ढांचे में पुनर्गठित किया जाए, जिसमें डिजिटल ऑडिटिंग अनिवार्य हो। जिन अधिकारियों की लापरवाही सिद्ध हो, उनके विरुद्ध तत्काल सेवा-पृथक्करण एवं केंद्रीय सतर्कता आयोग के माध्यम से जांच आरंभ की जाए।
(5) दोषियों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्रवाईः दोषी निर्माताओं एवं नियामक अधिकारियों पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 102 (हत्या सदृश अपराध जो हत्या न हो) या धारा 106 (लापरवाही से मृत्यु) के अंतर्गत अभियोजन प्रारंभ किया जाए। ऐसे मामलों को Public Health Homicide के रूप में वर्गीकृत कर सार्वजनिक स्वास्थ्य को हुई क्षति की स्पष्ट जवाबदेही तय की जाए। प्रभावित परिवारों को त्वरित विशेष न्यायिक प्रक्रिया से न्यूनतम ₹50 लाख का मुआवजा एवं चिकित्सा सहायता प्रदान की जाए।
दंड प्रावधानों के ह्रास पर पुनर्विचार
यह अत्यंत चिंताजनक है कि आपकी सरकार द्वारा पारित जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023 — जिसे लोकसभा में 27 जून 2023 को, राज्यसभा में 2 अगस्त 2023 को पारित किया गया तथा मान. राष्ट्रपति द्वारा 11 अगस्त 2023 को स्वीकृति प्रदान की गई — के माध्यम से औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम, 1940 की धारा 27 में संशोधन कर पूर्ववर्ती कठोर दंड प्रावधानों को कमजोर कर दिया गया है। जिसके कुछ नमूने निम्नानुसार हैं:
•    धारा 27(बी): पूर्व में न्यूनतम 1-3 वर्ष का कारावास अनिवार्य था, जिसे अब अधिकतम 2 वर्ष के कारावास या न्यूनतम ₹10,000 के जुर्माने तक सीमित कर दिया गया है, जिससे “कंपाउंडिंग” का विकल्प खुल गया है।
•    धारा 27(डी): पूर्व में 2 वर्ष तक कारावास एवं जुर्माना था, अब बिना कारावास की बाध्यता के केवल जुर्माना (न्यूनतम ₹5 लाख) तक सीमित कर दिया गया है।
•    धारा 30(2): पूर्व में 2 वर्ष तक कारावास एवं न्यूनतम ₹10,000 जुर्माना था, अब केवल ₹5 लाख जुर्माना कर दिया गया है तथा कारावास का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है।
•    ये संशोधन Ease of Doing Business के नाम पर किए गए, परंतु वास्तव में अपराधियों को प्रोत्साहन देने वाले सिद्ध हुए हैं तथा नियामक तंत्र को भय-मुक्त बना दिया है। DEG-दूषित सिरप जैसी त्रासदियाँ इसका प्रत्यक्ष परिणाम हैं।
•    इन प्रावधानों — विशेषकर धारा 27, 30(2) एवं कंपाउंडिंग विकल्पों — पर तत्काल पुनर्विचार किया जाए तथा इन्हें पूर्ववत कठोर रूप प्रदान कर भारतीय न्याय संहिता की धारा 102 या 106 से संबद्ध किया जाए, ताकि जन-स्वास्थ्य हनन पर कठोरतम दंड सुनिश्चित हो सके।
पारदर्शिता और आपूर्ति श्रृंखला सुधार
•    औषधि निर्माण इकाइयों एवं एक्सिपिएंट सप्लायरों के लिए ब्लॉकचेन-आधारित डिजिटल ट्रेसबिलिटी प्रणाली अनिवार्य की जाए।
•    फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (PvPI) को सशक्त बनाया जाए, जिसमें नागरिकों के लिए मोबाइल ऐप-आधारित रिपोर्टिंग सुविधा हो।
•    सार्वजनिक वितरण में उपयोग की जाने वाली दवाओं की नियमित एवं स्वतंत्र गुणवत्ता-जांच अनिवार्य की जाए, तथा वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
माननीय प्रधानमंत्री जी, यह विषय किसी दल या व्यक्ति का नहीं, अपितु देश के हर बच्चे एवं हर नागरिक के जीवन का है। DEG जैसी घटनाएँ हमारे नियामक एवं नैतिक ढांचे पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। मैं सरकार से अपेक्षा करता हूँ कि इस प्रकरण को एक सबक बनाते हुए पूर्ववत कठोर दंड प्रावधानों की पुनर्स्थापना की जाए, ताकि कोई भी व्यक्ति भविष्य में जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने का साहस न कर सके।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप इसे गंभीरता से लेंगे तथा मध्यप्रदेश सहित देश के पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने तथा दवा उद्योग पर निरंतर उठ रहे सवालों और संदेहों को दूर करने के लिए ठोस कार्यवाही करेंगे, जिससे भारत के नागरिक निश्चिंत होकर सरकारी दवा वितरण केंद्रों और मेडिकल स्टोर्स से भय-रहित होकर अपने उपचार के लिए दवाओं का सेवन कर सकें।

शुभकामनाओं सहित,


आपका,
(दिग्विजय सिंह)