Letter to Shri Arun Jaitley on GST


प्रिय श्री अरूण जेटली,

आपने मेरे दिनांक 06/05/2017 के पत्र का उत्तर दिया, इसके लिए मैं आपका अत्यंत आभारी हूं।

आपके पत्र पर मेरी प्रतिक्रिया निम्नानुसार हैः

  1. यदि यह मान भी लिया जाए कि समस्त वस्तु एवं सेवा प्रदाताओं के लिए निर्धारित मासिक रिटर्न, जीएसटी आर-3 की प्रविष्टियां प्रदाताओं द्वारा प्रदत्त वस्तुओं एवं सेवाओं के मामले में, एवं वस्तुएं व सेवाएं प्राप्त करने वालांे के मामले में, उनके द्वारा दी गई जानकारी से आटो पापुलेट हांेगी, तब भी यह स्पष्ट है कि इन रिटर्नाें की सभी नौ तालिकाओं में प्रविष्टि हेतु मूल जानकारी उन्हें अपने बही खातों के आधार पर तैयार करनी होगी एवं जीएसटी आर-1 एवं जीएसटी आर-2 में अपलोड करनी होगी, और यह जानकारी मात्र विक्रेताओं द्वारा प्रदत्त वस्तुआंे एवं सेवाओ के चालानों की सूची नहीं होगी।

  2. इसके अलावा, कराधान की अवधि में निर्यातित आपूर्तियों, छूट प्राप्त वस्तुओं एवं गैर-जीएसटी आपूर्तियों की जानकारी भी करदाता को अपने बहीखातों के माध्यम से प्राक्कलित कर देनी होगी। ऐसा प्रतीत हो सकता है कि यह एक जटिल प्रक्रिया नहीं होगी एवं इसके लिए करदाता को अधिक श्रम नहीं करना होगा, किंतु वास्तविकता यह है कि करदाता को पूर्वकथित हर प्रकार की आपूर्तियों के अभिलेख रखने होंगे ताकि उसके द्वारा दिए जाने वाले विवरण में कोई त्रुटि न हो। इस प्रकार, जीएसटी आर-3 मुख्यतः एक आटो पापुलेटिड रिटर्न है किंतु त्रुटिरहित जीएसटी आर-3 प्रस्तुत करने के लिए वर्गीकृत विवरण देना अनिवार्य होगा।

  3. मैं विनम्रतापूर्वक रिटर्न प्रस्तुत करने एवं जीएसटीएन द्वारा उसके निपटारे की प्रक्रिया की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा। किसी आपूर्तिकर्ता को सर्वप्रथम जीएसटी आर-1 तैयार करना होगा एवं उसे जीएसटीएन पर अपलोड करना होगा। इसके पश्चात, सभी विक्रेताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए जीएसटी आर-1 के आधार पर सिस्टम द्वारा स्वतः तैयार किए गए खरीदी के विवरण को सही एवं अद्यतन करना होगा। इसके पश्चात जीएसटी आर-3 का लगभग 90 प्रतिशत विवरण सिस्टम द्वारा स्वयं तैयार किया जाएगा। इसके पश्चात जीएसटीएन इनपुट टेक्स क्रेडिट के दावों का मिलान करेगा एवं किसी भी प्रकार की विसंगति की स्थिति में आदाता को संशोधित कर देयता की जानकारी फार्म जीएसटी एमआईएस-1 के माध्यम से दी जाएगी। इसके बाद में किए जाने वाले किसी संशोधन का विवरण पुनः संशोधित जीएसटी एमआईएस-1 के माध्यम से दिया जाना होगा। इसी प्रकार की अन्य ऐसी विसंगति की जानकारी भी करदाताओं को दी जानी होगी, जिससे उनके द्वारा देय कर की राशि में परिवर्तन होगा। इससे यह स्पष्ट है कि करदाता द्वारा प्रस्तुत रिटर्न को उसी रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा बल्कि प्रत्येक माह उसके द्वारा प्रस्तुत रिटर्न में कुछ न कुछ परिवर्तन एवं संशोधन होगा, जिसके फलस्वरूप उसकी कर देयता परिवर्तित होगी। इस तरह, यह कर अधिकारी के स्थान पर कम्प्यूटर द्वारा किया गया कर निर्धारण होगा। इस प्रकार, सही रिटर्न प्रस्तुत करने के बाद भी करदाता को वर्ष भर, लगातार, सिस्टम द्वारा किए गए परिवर्तनों एवं संशोधनों को लेकर अद्यतन होते रहना पड़ेगा और सिस्टम द्वारा किए गए परिवर्तन सही हैं या नहीं इस संबंध में स्वयं को संतुष्ट करना होगा। अतः वर्ष में एक बार कर निर्धारण के स्थान पर करदाता को प्रत्येक कर अवधि के लिए कर निर्धारण करवाना होगा अर्थात एक वित्त वर्ष में 12 बार। सरकार करदाताओं को लगातार आश्वस्त कर रही है कि जीएसटी व्यवस्था के अंतर्गत कर का निर्धारण नहीं होगा किंतु ऊपर दिए गए विवरण से स्पष्ट है कि यह सत्य नहीं है। यदि यह दावा सही है कि माह मे केवल एक रिटर्न प्रस्तुत करना होगा, एवं दो अन्य रिटर्न संसूचनात्मक निविष्टयां हैं, तो फिर जीएसटी अधिनियम की धारा 47 में जीएसटी आर-1, जीएसटी आर-2 एवं जीएसटी आर-3 तीनांे के लिए 100 रूपये प्रतिदिन के अर्थदंड का प्रावधान क्यों है?

  4. निःसंदेह यह सच है कि वर्तमान वेट प्रणाली में इनपुट टेक्स क्रेडिट (आईटीसी) की पात्रता हेतु चालानों के मिलान की प्रक्रिया कई राज्यों ने अपनाई है किंतु चालानों के इस प्रकार के मिलान की प्रक्रिया के कारण कई करदाताओं को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। और वह भी उनकी किसी गलती के कारण नहीं, बल्कि उनके आपूर्तिकर्ताओं द्वारा नियमों का अनुपालन न करने के कारण या आपूर्तिकर्ता की किसी अन्य गलती के कारण। यह सच है कि करारोपण से संबंधित विभाग, कर की वसूली करने में सफल हो जाते हैं किंतु यह भी सच है कि इस कर का भुगतान वास्तविक करदाता द्वारा नहीं किया जाता बल्कि आईटीसी के न्यायपूर्ण हकदार द्वारा किया जाता है। मुझे आईटीसी के दावों के प्रकरणों से जुड़े कई व्यक्तियों ने व्यक्तिगत तौर पर सूचित किया है कि आईटीसी के दावों और उन्हें अस्वीकार किए जाने के कारण मुकदमेबाजी बढ़ रही है और उन व्यक्तियों को भारी धनराशि व्यय करनी पड़ रही है, जो वास्तविक करदाताओं द्वारा कर का भुगतान न करने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

  5. विभिन्न वस्तुओं की आपूर्ति पर कर की दरें अधिसूचित की गई हैं जो उनके एचएसएन वर्गीकरण पर आधारित हैं। इस वर्गीकरण में विभिन्न वस्तुओं के लिए प्रयुक्त शब्दावली एवं उन वस्तुओं के बाजार में प्रचलित या सामान्य उपभोक्ता द्वारा प्रयुक्त नामों का मिलान करना आसान नहीं है। कई बार इस सूची के आधार पर यह पता लगाना कठिन होता है कि किसी वस्तु विशेष पर जीएसटी की कौनसी दर लागू होगी एवं इस वस्तु का विवरण किस अध्याय में है। इसका एक उदाहरण है दालें। केन्द्रीय विक्रय कर अधिनियम में सभी दालों एवं अनाजों के लिए उनके बाजार एवं उपभोक्ताओं में प्रचलित नामों का ही इस्तेमाल किया गया था परंतु वर्तमान एचएसएन-आधारित वर्गीकरण में यद्यपि अनाजों को एक पृथक अध्याय में रखा गया है परंतु दालों को न तो अनाज के साथ रखा गया है और ना ही पृथक से सूचीबद्ध किया गया है। ‘खाद्य सब्जियां जड़ें एवं कन्द‘ शीर्षक की सूची में दालों को रखा गया है और उनके लिए शुष्क फलीय सब्जियां, छिलकेदार, छीली हुई या खंडित शब्द का इस्तेमाल किया गया है। अतः एक साधारण व्यापारी के लिए किसी ऐसी वस्तु को खोजना बहुत मुश्किल होगा जिसे उसके वैज्ञानिक या वानस्पतिक नाम से सूचीबद्ध किया गया हो, ना कि उस नाम से जो बाजार में सामान्य जनता में प्रचलित हो।

  6. मैं यह मानकर चल रहा हूं कि आप इस तथ्य से अवगत हैं कि पूर्ववर्ती विक्रय कर कानूनों के दौर में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं पर कर की अलग-अलग दरों के कारण बहुत मुकदमेबाजी होती थी। करारोपण से संबंधित शासकीय मशीनरी का प्रयास होता था कि किसी भी वस्तु पर आरोपित किए जाने वाले कर की दर, जितनी अधिक संभव हो, उतनी अधिक निर्धारित की जाए। संबंधित प्रकाशन उन निर्णयों से भरे पडे़ हैं जो किसी भी विशिष्ट वस्तु पर कर की कितनी दर होनी चाहिए इस संबंध में व्यापारी एवं कर मशीनरी के परस्पर विरोधी निष्कर्षांे के कारण उत्पन्न हुए।

  7. मैं जीएसटीएन के प्रमुख श्री नवीन कुमार का एक साक्षात्कार संलग्न कर रहा हूं जिसमें उन्होंने यह स्वीकार किया है कि उन्हें प्रणाली के परीक्षण के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला क्योंकि उसमें समय समय पर परिवर्तन होते गए। वे अभी तक जीएसटी आर-1 की कोडिंग नहीं कर पाए हैं। यह 15/07/2017 तक हो पाएगा। जीएसटी आर-2 के मामले में यह जुलाई के अंत तक हो पाएगा एवं जीएसटी आर-3 के मामले में उसके भी दस दिन बाद। इसका अर्थ यह हुआ कि आप जीएसटी को, जीएसटी आर-1/2/3 का प्रारूप निर्धारित हुए बिना ही लागू करना चाहते हैं और आशा करते हैं कि यह सफल होगा। क्या यह ‘नए नोट मुद्रित किए बिना ही विमुद्रीकरण करने का‘‘ दुहराव नहीं है?

  8. आपको स्मरण होगा कि वित्तीय मामलों की समिति की आपकी अध्यक्षता में हुई बैठक में मैंने कहा था कि जीएसटी एक क्रांतिकारी कर सुधार है और इसे पर्याप्त तैयारी के बिना लागू करने की जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए। यदि लागू करने के बाद यह असफल हो गया तो इससे देश में आर्थिक अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

  9. प्रख्यात कर अधिवक्ता अरविंद दातार के अनुसार, वर्तमान प्रारूप में इसके अनुपालन का ढांचा जीएसटी को अपनाने वाले विश्व के किसी भी देश के ढांचे से अधिक जटिल है। यदि यह असफल हुआ तो देश में पूर्ण आर्थिक अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी जब हम धीरे-धीरे विमुद्रीकरण के दुष्प्रभावों से उबर रहे हैं।

    छोटे एवं मझोले व्यापारियों को इसके प्रावधानों का पालन करने में खासी दिक्कत होगी और इस कारण भ्रम की स्थिति में और वृद्धि होगी।

    संभवतः अब भाजपा की नीति छोटे एवं मझोले व्यापारियों का साथ छोड़कर बड़े व्यवसासियों की सहायता करने की है। ये छोटे एवं मझोले व्यापारी, जनसंघ के समय से भाजपा का प्रमुख आधार रहे हैं।

    कांग्रेस पार्टी जीएसटी का पूरा समर्थन करती है परंतु उसका जो ढांचा निर्धारित किया गया है एवं जिस प्रकार जल्दबाजी में उसे लागू किया जा रहा है, उसका समर्थन नहीं करती।
  10. बेशक, इस प्रक्रिया का परिणाम वही होगा जिसका अनुमान ब्लंूबर्ग के दिनांक 27/06/2017 के लेख में लगाया गया है ‘‘अधिवक्ता अत्यंत प्रसन्न है क्योंकि जीएसटी से मुकदमों की बाढ आ जाएगी।‘‘

    आखिर हम प्रख्यात वकील के वित्तमंत्री बनने पर और क्या आशा कर सकते हैं?

    एक वकील के तौर पर मुकदमों की आने वाली बाढ़ के लिए आपको अग्रिम बधाई।

    शुभकामनाओं सहित

    भवदीय

    दिग्विजय सिंह

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