भारत की बेइज्जती

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपनी प्रेस-कांफ्रेंस में तीन दिन पहले दावा किया था कि इस बार चीन कोई आपत्ति नही करेगा और भारत को सदस्यता अवश्य मिल जाएगी लेकिन हुआ क्या?

परमाणु सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की सिओल-बैठक में भारत की बहुत बेइज्जती हो गई। उसकी सदस्यता मिलनी तो दूर, परमाणु-अप्रसार के बारे में भारत को तरह-तरह के उपदेश भी सुनने पड़े।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपनी प्रेस-कांफ्रेंस में तीन दिन पहले दावा किया था कि इस बार चीन कोई आपत्ति नही करेगा और भारत को सदस्यता अवश्य मिल जाएगी लेकिन हुआ क्या?

अकेले चीन ने ही नहीं, दस सदस्य— राष्ट्रों ने आपत्ति कर डाली। जिस स्विटज़रलैंड के राष्ट्रपति को नरेंद्र मोदी ने अत्यंत उदार शब्दों में धन्यवाद दिया, उसी देश ने भारत का विरोध कर दिया। इसका मतलब क्या हुआ?

जब मोदी ज्यूरिख गए तो स्विस राष्ट्रपति ने मोदी से झूठ बोल दिया या फिर मोदी को कूटनीतिक भाषा की साधारण समझ भी नहीं है। वे किसी भी बात का क्या से क्या मतलब निकाल लेते हैं? यह बड़ा गंभीर मसला है।

मोदी को प्रेस-कांफ्रेस करके इस मामले की सफाई देनी चाहिए, वरना अगले माह संसद में उनकी इतनी धुनाई हो जाएगी कि वे विदेशी मामलों से कतराने लगेंगे। इसी तरह शांघाई सहयोग परिषद की बैठक में कल उन्होंने ताशकंद में चीनी राष्ट्रपति शी चिन पिंग से क्या बात की और उन्होंने क्या जवाब दिया, यह राष्ट्र को बताया जाना चाहिए।

विदेश सचिव जयशंकर की चीन-यात्रा के दौरान क्या चीनी कूटनीतिज्ञों ने उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ा दिया था? विदेशी मंत्री सुषमा स्वराज इस दौरान बीमार रहीं। विदेश मंत्रालय कौन संभाल रहा था? एन.एस.जी. के मामले में उनका बयान काफी दूरदर्शितापूर्ण था लेकिन मैंने उस समय भी कहा था कि चीन पर भरोसा करना मुश्किल है।

परमाणु सप्लायर्स ग्रुप में सदस्यता नहीं मिली तो इससे भारत का कोई भयंकर नुकसान नहीं हुआ है लेकिन हमने 56 इंच के सीने से जो डोंडियां पीटी थीं, उसके कारण हमारे नेता दुनिया के सामने अब किस मुंह से पेश आएंगे?

यदि पाकिस्तान के कारण चीन हमारा विरोध करता रहता तो वह बात समझ में आ सकती थी। लेकिन आश्चर्य है कि ‘ब्रिक्स’ में हमारे साथी दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील ने भी हमारा विरोध किया। हमारी विदेश नीति को लगी यह जबर्दस्त ठोकर है।

इस ठोकर से ही हम कुछ सीखें।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक